नई
दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नोएडा पार्क निर्माण से रोक हटने की बाट जोह रही
उत्तर प्रदेश सरकार को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से फिर निराशा हाथ लगी।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण से रोक हटाने का राज्य सरकार का अनुरोध ठुकरा
दिया। इतना ही नहीं कोर्ट ने केंद्रसरकार को इस निर्माण से ओखला पक्षी
विहार पर होने वाले प्रभाव और छह हजार पेड़ों के काटे जाने से पर्यावरण पर
असर का आकलन करने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने वन एवं
पर्यावरण मंत्रालय से चार सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। साथ ही दुष्प्रभाव
को कम करने के उपाय भी बताने को कहा है। केंद्र सरकार और सीईसी की रिपोर्ट
के बाद उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीमकोर्ट से निर्माण पर लगी रोक हटने की
उम्मीद कर रही थी। लेकिन बुधवार की सुनवाई में पासा पलट गया। वन मामलों
में न्यायालय के मददगार वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पार्क में
निर्माण के लिए 6000 पेड़ काटे गए हैं। करदाताओं की रकम पर लगाए गए पेड़ों
को इस तरह सरकार कैसे काट सकती है। ये पेड़ फर्नीचर की लकड़ी के लिए या
व्यावसायिक उपयोग से नहीं लगाए गए थे। करदाताओं की रकम पर्यावरण को बेहतर
करने के लिए खर्च की गई थी। भले ही यह क्षेत्र तकनीकी रूप से वन क्षेत्र
की परिभाषा में ना आ रहा हो और न ही पर्यावरण मंजूरी लेने की परिधि में
आता हो लेकिन केंद्र सरकार असहाय नहीं है। पर्यावरण कानून में उसे व्यापक
अधिकार हैं।
अतिरिक्त सालीसीटर जनरल इंद्रा जयसिंह ने कहा कि केंद्र ने वन नियमों
का आकलन करने के बाद ही कहा है कि यह न तो वन क्षेत्र है और न ही इसमें
पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत है। कोर्ट ने जानना चाहा कि इतने बड़े
पैमाने पर हुई पेड़ों की कटाई का पर्यावरण पर क्या असर होगा और इसका पक्षी
विहार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जयसिंह ने इसके लिए समय मांगा। जबकि उत्तर
प्रदेश के वकील केके वेणुगोपाल व कमलेंद्र मिश्रा ने निर्माण पर लगी रोक
हटाने की मांग करते हुए कहा कि जब किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है तो
फिर निर्माण से रोक हटा दी जानी चाहिए। 75 फीसदी काम हो चुका है और जो
निर्माण हो चुका है उसके संरक्षण में रोजाना पौने दो लाख रुपये खर्च हो
रहे हैं। ऐसे में भला निर्माण रोकने में किसका फायदा होगा। लेकिन पीठ उनकी
दलीलों से प्रभावित नहीं हुई।