पटना किसानों और भूमिहीनों की समस्या को
फोकस में लाने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) करीब चालीस
साल पुराने भूमि आंदोलन को फिर से जिंदा करेगी। पार्टी प्रदेश में 15 मई
से ‘जमीन हड़पो अभियान’ की शुरूआत करेगी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)
ने 1971 में यह आंदोलन आरंभ किया था, परन्तु इसके दिशाहीन हो जाने के कारण
एक सप्ताह में ही इसे बंद कर दिया था। वाम कार्यकर्ताओं ने उस समय छोटे
जमींदारों की जमीन पर भी कब्जा करना आरंभ कर दिया था।
माकपा सूत्रों ने बताया कि 32 बड़े जमींदारों के खिलाफ एक माह तक जमीन
हड़पो अभियान चलाने के बाद 15 जून को पटना में पार्टी का राज्य स्तरीय
सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। सम्मेलन में सरकार पर भूमि सुधार कार्यक्रम
लागू करने के लिए दबाव डाला जाएगा। डी.बंधोपाध्याय आयोग की अनुशंसा को
अमली जामा पहनाने की मांग उठायी जाएगी। पार्टी का मानना है कि भूमि सुधार
के पक्ष में केवल वाम दल खड़े हैं। बाकी सभी राजनीतिक दल किसी न किसी
प्रकार से इसका विरोध ही कर रहे हैं। सरकार भी भूमि सुधार के मसले पर पीछे
हट रही है।
माकपा के राज्य सचिव विजयकांत ठाकुर बताते हैं कि भूमि संबंधी आंदोलन
की रूपरेखा तैयार की गयी है। अगले माह से यह आंदोलन शुरू हो जाएगा। वाम
नेताओं ने कहा कि 1971 में जब भाकपा ने यह आंदोलन आरंभ किया थो तो छोटे
जमींदारों, जिनके पास 15 एकड़ के करीब भूमि थी, उनकी जमीन पर भी कब्जा करना
आरंभ हो गया था। इसके चलते इस आंदोलन को तुरंत वापस लेना पड़ा। वर्तमान में
इस आंदोलन की आवश्यकता इस बात को लेकर भी है कि भूमिहीनों को जमीन देने की
बात तो होती है, परन्तु उन्हें उसका कब्जा नहीं दिलाया जाता। महादलितों को
अभी जमीन देने बात की जा रही है। जमीन के मालिकाना हक दिलाने की समस्या
उनके साथ भी उत्पन्न होगी। वैसे करीब चालीस साल पहले हुए आंदोलन का यह
नतीजा जरूर हुआ था कि डा.जगन्नाथ मिश्रा की पूर्ववर्ती सरकार ने लगभग एक
हजार जमींदारों की सूची तैयार करायी थी। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री लालू
प्रसाद ने भी करीब 500 बड़े जमींदारों की सूची विधानसभा में पेश की थी।
माकपा का 15 मई से चलने वाला अभियान विधानसभा में पेश इस सूची में शामिल
32 बड़े जमींदारों के खिलाफ चलेगा।