पटना। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार
गारंटी कानून (मनरेगा)के तहत क्रियान्वित हो रही योजनाओं के संचालन में
फेरबदल का फैसला सरकार ने लिया है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बुधवार
को आयोजित समीक्षा बैठक में इस आशय के संकेत दिये गये। मनरेगा के
क्रियान्वयन के लिए सरकार एक सोसायटी बनाएगी और ‘मनरेगा आयुक्त’ का पद
सृजित करेगी। इस योजना का केंद्रीय अनुदान इसी सोसायटी के माध्यम से जिलों
को वितरित किया जाएगा। इस समय सीधे जिलों को पैसा आवंटित होता है और
ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव ही इस योजना की निगरानी करते हैं।
ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा ने मंगलवार को
बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से मनरेगा आयुक्त के पद सृजन सहित
सोसायटी बनाने पर सहमति मिल गयी है। मुख्यमंत्री के साथ आयोजित बैठक में
मनरेगा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों ने भी अपनी बात रखी। सोसायटी बनने
के बाद जिलों के आवंटन और योजनाओं के मूल्यांकन पर विभाग का नियंत्रण बढ़
जाएगा। इससे जिलों को कार्यदक्षता के आधार पर राशि आवंटित करने का अधिकार
सोसायटी को मिल जाएगा। एक जिले का पैसा दूसरे जिले को भी दिया जा सकेगा।
इस बीच मंत्री ने बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में ग्रामीण विकास मंत्रालय
की ओर से फूटी कौड़ी नहीं मिली है। इस साल 44 सौ करोड़ रुपये का श्रम बजट
है। मंत्री ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी से
मिलकर वे राशि आवंटित करने की बात कह चुके हैं, लेकिन उनकी बात अब तक
अनसुनी है। ऐसे में केंद्र सरकार बिहार के श्रमिकों का अहित कर रही है।
बोले, 80 प्रतिशत पंचायतों में धन के अभाव में इस योजना का क्रियान्वयन ठप
है। जून के बाद बरसात शुरू हो जाने से मिट्टी का काम नहीं हो सकता है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय पर उन्होंने भेदभाव का आरोप लगाया। यह कहा कि
बिहार में मनरेगा का खजाना खाली है और लोगों के पास अब रोजगार नहीं है,
ऐसे में सौ दिन रोजगार की गारंटी पर अमल होना मुश्किल है।