पटना। धरती के कलेजे से लिपटकर रोज ही अपने
घर का रोना रोने वाले शहरी गरीबों के लिए उनके हिस्से की छत का मयस्सर
होना अब तक मुश्किल ही है। तीखी धूप में जलता बदन और हाड़ कंपाती ठंड में
‘काठ’ होते चेहरे की उम्मीद पर निर्माण एजेंसी की कच्छप गति ने पानी फेर
दिया है। सूबे में शहरी गरीबों को घर देने की घोषणा सरकार ने कई मौकों पर
की है। ऐसी 32 हजार आवासीय इकाइयों के लिए करीब नौ सौ करोड़ रुपये का
इंतजाम भी किया गया, लेकिन क्रियान्वयन एजेंसी की सुस्ती ने लोगों के
मंसूबे पर पानी फेर दिया। हाल में विभागीय मंत्री सह उपमुख्यमंत्री सुशील
कुमार मोदी ने इन स्थिति पर खफा होकर अधिकारियों को खरी खोटी सुनायी थी।
स्थिति यह है कि तीन साल पहले जिन योजनाओं का शिलान्यास हुआ, उनमें से कुछ
पर तो काम चल रहा है लेकिन कई जगहों पर एक भी ईट नहीं जुट सकी है। मार्च
2010 तक एक भी शहरी गरीब को बना हुआ घर आवंटित नहीं किया गया। प्रगति के
नाम पर नगर आवास विभाग को भरोसा है कि बहादुरगंज, भागलपुर और मुजफ्फरपुर
के कांटी-मोतीपुर में पहले चरण में जून तक गृह इकाइयों के उद्घाटन की
स्थिति बन जाएगी।
मालूम हो कि शहरी गरीबों को आधारभूत सुविधा के तहत पटना और बोधगया तथा
समेकित आवास एवं गंदी बस्ती सुधार योजना के तहत राज्य के अन्य शहरों में
यह निर्माण होना है। सिर्फ पटना में ही 626 करोड़ की लागत से 19 हजार 124
घरों का तथा बोधगया में करीब 55 करोड़ की लागत से 2000 घरों का निर्माण
होना है। पटना की योजना में 50 फीसदी जबकि बोधगया के लिए 80 फीसदी राशि
केन्द्र सरकार दे रही है। बीएसयूपी के लिए हुडको और आईएचएसडीपी के लिए
हिन्दुस्तान प्रिफेब को निर्माण का जिम्मा मिला हुआ है। हकीकत यह है कि 21
हजार 124 आवासीय इकाइयों में से फरवरी 2010 तक सिर्फ 236 इकाइयों के
निर्माण का काम ही प्रगति में है, जबकि अन्य 19 शहरों में मात्र तीन हजार
यूनिट पर निर्माण का काम चल रहा है। यानी कुल 32 हजार 136 आवासीय इकाइयों
में सिर्फ 3048 इकाइयों के निर्माण का काम ही प्रगति में है। एक भी पूरा
नहीं हुआ।
आईएचएसडीपी के तहत प्रथम चरण में पांच शहरों में बहादुरगंज के लिए
294, मुजफ्फरपुर के कांटी के लिए 143, पूर्णिया के लिए 1487, भागलपुर के
लिए 1188 व किशनगंज के लिए 552 इकाइयां स्वीकृत हैं। हिन्दुस्तान प्रिफेब
की दलील थी कि कि भागलपुर में 1055, पूर्णिया में 511 इकाइयों के निर्माण
का काम अगस्त 2009 और शेष का काम दिसंबर तक पूरा हो जायेगा। मगर प्रगति के
आंकड़े इस दावे को आज भी मुंह चिढ़ाते हैं।