फिर जीवंत हुए गांधी के चरखे

बेतिया
[कार्यालय प्रतिनिधि]। जिले में वर्षो से बंद हो गए गांधी के चरखे फिर से
जीवंत हो गए हैं, जिससे ग्रामीण भारत का सपना साकार होने की उम्मीद जगी
है। बेरोजगार हुए कातिनों, बुनकरों और कारीगरों के चेहरे की रौनकता लौटने
लगी है।

खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष शशि कुमार मिश्र और सचिव रामरंजन लाल
कर्ण ने बताया कि कार्यकर्ताओं ने हिम्मत जुटाकर सूत कताई आरंभ कराई है।
इस क्रम में दस रेशमी और दस सूती चरखे संचालित होने लगे हैं। हालांकि अभी
भी जिले के 330 कातिनें, सैकड़ों बुनकर और कारीगर चरखों के संचालित होने और
बंद उत्पादनों के आरंभ होने की आस में हैं।

इन कातिनों में सर्वाधिक वृंदावन, पोखरभिंडा, बैरिया, बड़हरवा, मलाही
टोला, पखनाहा, नया बाजार बेतिया, जब्दौल, रानीपुर रमपुरवा, भितिहरवा
आश्रम, मठिया और रमपुरवा में थे। सनद रहे कि खासकर वृंदावन आश्रम में
सूती, पाली, रेशमी एवं ऊनी वस्त्र उत्पादन सह बिक्री केंद्र पिछले 15
वर्षो से बंद हैं। सरकार की गलत नीतियों से ग्रामोद्योग संस्थाओं को हुई
आर्थिक क्षति एवं खादी वस्त्रों के रीबेट मद में लाखों रुपये बकाया होना
इसका कारण है।

ज्ञात हो कि गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान ग्राम स्वराज की
स्थापना के व्यापक लक्ष्य के साथ ग्रामीण बुनकरों, कतिनों और कारीगरों के
कल्याण के लिए चरखा संघ का नवसंस्करण किया था। भारतीय खादी और ग्रामोद्योग
केंद्र की स्थापना हुई, लेकिन इनके विकास के लिए किसी स्तर से ठोस
कार्ययोजना नहीं बन सकी है।

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