मुजफ्फरपुर
[सुजीत कुमार]। लोक कहानियों के महत्वपूर्ण पक्षी पात्र तोता और मैना अब
कविता-कहानियों में ही मिलेंगे। ग्लोबल वार्मिग जिन पक्षियों की प्रजाति
को निगल रही है, उनमें तोता पहले नंबर पर है। कौवा दूसरे नंबर और घरों में
फुदकने वाली मैना तीसरे नंबर पर है।
ग्रीन गैस हाउस के बढ़ते प्रभावों ने तोता-मैना जैसे पक्षियों के
अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है। खेत-खलिहानों और पेड़-पौधों पर फुदकने
वाले ये पक्षी बहुत तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। नब्बे फीसदी पक्षी अधिक
नमी वाले क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए हैं या धरती की तपिश ने उन्हें
झुलसाकर मार दिया है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिग के चलते इन पक्षियों की प्रजजन
क्षमता सबसे अधिक प्रभावित हुई है। समशीतोष्ण क्षेत्रों में पिछले तीन
वर्षो तक तोता-मैना और कौवे की वंश वृद्धि के लिए आवश्यक प्राकृतिक
वातावरण मौजूद था, लेकिन अब उनकी संख्या लगातार घट रही है।
कीटनाशकों का कुप्रभाव:
कौवों की प्रजाति के ह्रास का कारण कृषि पर कीटनाशकों का बेतरह प्रयोग
है, जबकि तोता-मैना की प्रजाति पर कीटनाशकों के अतिरिक्त बदलते मौसम का
सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। इसका कारण है-तोता और मैना पक्षी जगत के सबसे
सुकुमार और संवेदनशील पक्षी माने जाते हैं। कौवों में प्राकृतिक तापक्रम
को झेलने की क्षमता उनसे ज्यादा होती है।
घर-घर में प्यारा:
तोता और मैना को घरों में भी पाला जाता है। बेतिया, मोतिहारी, शिवहर,
सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर ऐसे केंद्र हैं जहां से बहेलिए तोता को पकड़ कर
बिहार ही नहीं, देश के दूसरे हिस्से में भी बेचते हैं।