वाशिंगटन।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जलवायु परिवर्तन संबंधी वार्ताओं पर
विश्वास में बनी खाई को पाटने पर जोर दिया है। रमेश ने कहा कि कुछ
प्रत्यक्ष कदम उठाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोपनहेगन की
कानकुन में भी पुनरावृत्ति न हो।
उन्होंने सुझाव दिया कि विकासशील देशों को जो 10 अरब डालर की वित्तीय
मदद करने का वायदा किया गया है उसके भुगतान की शुरुआत से इन गंभीर मतभेदों
को दूर किया जा सकेगा। जलवायु परिवर्तन पर छठे मंच को संबोधित करते हुए
रमेश ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोपनहेगन समझौता इस दिशा में
एक महत्वपूर्ण कदम था लेकिन वार्ताओं के लिए यह एक अलग थलग मार्ग नहीं हो
सकता।
उन्होंने कहा कि समझौते में जो बिंदु आए थे मेरी निरंतर मांग है कि
इसे दो रास्तों से चल रही वार्ता प्रक्रिया में आम सहमति लाने के लिए
उपयोग में लाया जाया। यही एकमात्र प्रक्रिया है जो जायज है। वैश्विक
आर्थिक शक्तियों के इस फोरम को रमेश ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से
संबोधित किया। उन्होंने कहा, कि समाधान का तरीका बहुपक्षीय बातचीत ही है
लेकिन अंतत: विभिन्न पक्षों से बातचीत करनी चाहिए।
आइसलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण आकाश में छाई राख से यूरोपीय
विमान सेवाएं बाधित रहने के कारण रमेश इस फोरम में शामिल नहीं हो सके। इस
कारण कई प्रतिभागी देशों के प्रमुख इस कार्यक्रम में भाग नहीं ले पाए।
भारत का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप राजदूत मंजीव पुरी
ने किया।