लंदन।
पर्यावरण में ‘छोटा’ सा परिवर्तन भी ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप व भूस्खलन
जैसी भूगर्भीय घटनाओं को और ‘भयानक’ बना सकता है। वैज्ञानिकों ने सोमवार
को इस बाबत चेतावनी जारी की है।
रायल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अखबार में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि
बर्फ पिघलना, समुद्री स्तर बढ़ना और भयानक तूफानों में इजाफे का कारण
तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। ये सभी कारक धरती के आवरण पर बुरा
असर डाल सकते हैं। यहां तक कि पर्यावरण में छोटे से छोटा बदलाव भी भूकंपों
और सुनामी जैसी आपदाओं को सक्रिय कर सकता है।
कुछ साक्ष्य बताते भी हैं कि अलास्का जैसे स्थानों पर पर्यावरण
परिवर्तन का प्रभाव भूगर्भीय हलचलों पर पड़ना शुरू हो चुका है। यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन स्थित एआन बेनफील्ड यूसीएल हैजार्ड रिसर्च सेंटर के बिल
मैक्ग्वायर कहा कहना है कि गर्म होता मौसम ग्लेशियरों से बर्फ को पिघला
रहा है और इस वजह से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है। मैक्ग्वायर ने ही जरनल
में छपे इस शोध की समीक्षा की है। एक बार जब बर्फ पिघल जाती है तो वहां
धरती ऊपर की ओर ‘धक्का’ मारती है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका जैसे स्थानों
पर यह स्थिति किलोमीटर में हो सकती है। अब अगर सारी बर्फ पिघल जाए तो उस
स्थान पर भूकंप का खतरा पैदा हो सकता है।
भूगर्भीय हलचल में बढ़ोत्तरी से पानी के भीतर भूस्खलन होगा जो सुनामी
को फिर से पैदा कर सकता है। संभावित अतिरिक्त खतरा बर्फ की परतों के टूटने
से पैदा होने वाले ‘आइस-क्वेक्स’ [बर्फ के बीच आने वाला भूकंप] का भी है।
जिससे न्यूजीलैंड, कनाडा के न्यूफाउंडलैंड और चिली जैसे स्थान सुनामी की
जद में आ जाएंगे। शोध के अनुसार, बर्फ में कमी ज्वालामुखी विस्फोट को
उत्तेजित कर सकती है और बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी का भार धरती
के आवरण को चोट पहुंचा सकता है। इससे मैग्मा [धरती के भीतर चट्टानों का
पिघलना] विकसित हो जाएगा जो तटीय और द्वीपीय क्षेत्रों में ज्वालामुखी
विस्फोट और भूकंप का कारण बन सकता है।
ज्वालामुखीय हलचलों के कारण भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है
और जहां ज्वालामुखी स्थित है वहां से दूर-दूर तक इसका प्रभाव पड़ सकता है।
प्रोफेसर मैक्ग्वायर ने कहा कि बदलाव हजारों साल की बजाए आने वाले दशकों
या शताब्दियों में हो सकते हैं। यह इस तथ्य पर निर्भर करेगा कि समुद्री
जलस्तर कितनी तेजी से बढ़ता है। उन्होंने चेतावनी दी, ‘यह बढ़ोत्तरी
उम्मीद से कहीं छोटी हो सकती है। पर्यावरण बदलाव पर नजर डालें तो इसके लिए
हमें बहुत बड़े बदलाव की जरूरत नहीं होगी।’ उन्होंने जोड़ा, ‘चिंता की बात
यही है कि मौसम में जरा सा बदलाव भी बुरे परिणाम पैदा कर सकता है।’
उन्होंने अपनी समीक्षा में कहा कि इसके ‘पर्याप्त साक्ष्य’ उभर रहे
हैं कि भूगर्भीय, ज्वालामुखीय और भूस्खलन के क्रियाकलाप पर्यावरण में छोटे
से बदलाव से भी प्रभावित हो रहे हैं।