आगरा।
बचपन में पढ़ी कहानी में कौए का जतन कर प्यास बुझाना तब परिश्रम का रोचक
सबक था तो आज लाखों परिवारों की मजबूरी। ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ी
त्यों-त्यों घटे जल संसाधन। आज स्थिति विकराल हो गई। कहानी के हीरों की
तरह पानी के लिए भटकने से दिन की शुरुआत करने को बाध्य हैं लाखों परिवार।
यह हाल है आगरा मंडल के चार जिलों के साथ-साथ अलीगढ़ मंडल के एटा और
काशीराम नगर का।
भीषण गर्मी में पानी के लिए मची है त्राहि-त्राहि। सरकारी संसाधनों की
गर्मी शुरू होते ही खुल चुकी है पोल। पानी रसातल में और हैण्डपम्प शोपीस।
सरकारी आपूर्ति साबित हो रही है ऊंट के मुंह में जीरा। फिर भी जल किल्लत
से जूझ रहा आगरा। आगरा जल संस्थान की जीवनी मंडी स्थित प्रथम इकाई की
स्थापना 1888 में यहा बिजली के आने के 33 साल पूर्व हो गई थी। उस समय आगरा
की अबादी महज 1.5 लाख थी। दूसरी इकाई की स्थापना 1997 में हुई और उस समय
जनसंख्या लगभग 11.5 लाख पहुंच चुकी थी, जो वर्तमान में 16 लाख से अधिक है।
वर्तमान में दोनों जलकलों की राइजिंग मेंस की लम्बाई 2950 मीटर है। दोनों
की भंडारण क्षमता जहा 40 लाख लीटर है। दोनों जल संस्थान प्रतिदिन 2500 लाख
लीटर जल उपलब्ध करा पाते हैं, जिनमें से 2100 लाख लीटर शहरवासियों को और
400 लाख लीटर सैन्य क्षेत्र सहित बल्क यूजरों को दिया जाता है।
मानकों के मुताबिक प्रति व्यक्ति पानी की औसत जरूरत 172 लीटर है,
लेकिन आपूर्ति औसतन 110 से 120 लीटर प्रतिदिन है। लगभग 13 लाख आबादी जल
संस्थान की आपूर्ति पर निर्भर है, जबकि शेष में जलापूर्ति तंत्र गंगाजल
प्रोजेक्ट और जेएनयूआरएम के तहत विकसित किया जा रहा है। महानगर में रा
वाटर का एकमात्र स्त्रोत यमुना है, क्योंकि भूमिगत पानी खारा और फ्लोराइड
युक्त है। जिसके कारण पेयजल आपूर्ति में हैंडपंपों या टयूबवेलों की भूमिका
सीमित है। फिर भी लगभग सात हजार सरकारी हैंडपंप और पांच सौ से अधिक टैंक
टाइप स्टैंडपोस्ट भी लगे हुए हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में 150 नये हैंडपंप
महानगर सीमा में लगाये गये। ग्रामीण क्षेत्र की दशा बहुत खराब है ग्रामीण
महिलाएं, बच्चे मीलों दूर से पानी लाने को मजबूर हैं। चौथाई मथुरा खरीद कर
पी रहा पानी।
मथुरा जलकल पानी तो देता है पर दूषित, इस पानी से बचने के लिए शहर की
एक चौथाई आबादी खरीद कर पानी पीने को मजबूर है। जलकल के हैंडपंप, नलकूप और
ओवर हैड टैंक पूरी सप्लाई नहीं दे पा रहे। जहा सप्लाई है भी वहा कई जगह
पानी पीने योग्य नहीं है। 16 साल पहले तक घाट किनारे के कुएं कभी के सूख
चुके हैं, सो प्याऊ के लिए भी पानी खरीद कर ही लाया जाता है। एक ओर जहा
पैकेच्ड पानी के जार प्यास बुझा रहे हैं तो ऐसे भी हजारों परिवार हैं जो
सादा मीठा पानी अपेक्षाकृत कम महंगा है, उस पर निर्भर हैं। दुकानों के
अलावा घरों पर पहुंचने वाला पानी दो तरह से पहुंचता। पानी की किल्लत आगरा
सहित आसपास के कई शहरोंके लोग सह रहे हैं।