प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार को देखते हुए केंद्र से इस योजना को बंद करने
की मांग की है।
पटना में रविवार को गरीबी उन्मूलन सेमिनार में बोलते हुए नीतीश कुमार
ने कहा है कि जन वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टचार की जड़े काफी गहरी हो
चुकी हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करना आसान नहीं है जिसकी वजह से गरीबों तक
उनका हक नहीं पहुंच पा रहा है। इससे अच्छा होगा कि केंद्र इस योजना को बंद
कर गरीबों को अनाज खरीदने के लिए सीधे पैसे ही दे दे।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि जन वितरण प्रणाली में आए दिन भ्रष्टाचार और
घोटाले के मामले सामने आते रहते हैं जिसकी जांच के कमेटी बना दी जाती है
मगर इससे भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आ रही है। साथ ही नीतीश कुमार ने
केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा है कि केंद्र सरकार का गरीबी मापने का
तरीका गलत है। नीतीश ने मांग की है कि इसमें सुधार करने के लिए एक आयोग
गठित की जाए।
क्या है जन वितरण प्रणाली
केंद्र सरकार द्वारा बीपीएल कार्ड धारियों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध
कराया जाता है। जिसके लिए केंद्र सरकार 28 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही
है। लेकिन सस्ते अनाज के नाम पर गरीबों को सड़े हुए अनाज ही मिलते हैं। इस
तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं।
जन वितरण प्रणाली में फैला भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है इस प्रणाली
को लेकर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है। उच्चतम न्यायालय की ओर से
गठित न्यायमूर्ति डी. पी. बधवा समिति ने देश की जनवितरण प्रणाली यानि कि
पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार को कैंसर करार देते हुए सम्पूर्ण व्यवस्था
बदलने की वकालत की है।
न्यायमूर्ति बधवा समिति ने न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली
खंडपीठ के समक्ष अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीडीएस में भ्रष्टाचार और
कालाबाजारी का बोलबाला है। यह समस्या बहुत विकराल है और इसका निदान
यथाशीघ्र किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार गरीबों के लिए 28 हजार करोड़
रुपए देती है लेकिन सस्ते अनाज के नाम पर गरीबों को सडे़ हुए अनाज ही
मिलते हैं। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों, उचित मूल्य के दुकानदारों,
ट्रांसपोर्टरों और मिल मालिकों के बीच जारी गठजोड़ की वजह से पीडीएस
व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है।
उचित मूल्य के दुकान मालिक इलाके के पुलिस निरीक्षक और खाद्यान्न
निरीक्षक को बतौर घूस एक हजार रुपए देते हैं। गोदाम की देखभाल करने वाले
प्रति बोरी 10 रुपए उगाही करते हैं। ऐसा नहीं करने पर उन्हें सडे़ हुए
अनाज उपलब्ध कराए जाते हैं।
एक बोरी में औसतन 52 किलोग्राम गेंहू होता है। लेकिन बोरियों से गेहूं
निकाल लिया जाता है और दुकानों तक पहुंचते- पहुंचते इसमें अधिक से अधिक 45
किलो गेहूं रह जाता है।