बुलंदशहर।
नीम हकीम से भले ही बचने की सलाह दी जाती हो लेकिन फसलों के लिए नीम ही
हकीम है। जहां नीम, वहां क्या करे हकीम। ऐसी कहावतों से नीम की गुणवत्ता
सदियों से परिलक्षित हो रही है। यह फसलों की सुरक्षा में भी बेजोड़ है।
किसान जैसे-जैसे इसकी खूबियों से वाबस्ता हो रहे हैं, इसका इस्तेमाल बढ़ता
जा रहा है पर पेड़ों के कटान से समस्या यह भी आई है कि जो गांव-घर की चीज
थी, उसे बाजार से खरीदना पड़ रहा है।
नीम में करीब 17 प्रकार के आइसोमर्स [कीड़ारोधी तत्व] होते हैं,
जिन्हें नीमोनाइट्स कहा जाता है। इनमें भी एजाडिरेक्टा, सीलोनिन,
मिलयाट्रायल, लिंबन आदि मुख्य हैं। इनकी संरचना आधुनिक रासायनिक कीटनाशकों
से बिल्कुल भिन्न है। कारण, वे क्लोरीन एवं फास्फोरस आदि विषैले पदार्थो
से बने होते हैं, जो किसी न किसी रूप में अनाज को तो प्रदूषित करते ही
हैं, मित्र कीटों को भी नुकसान पहुंचता है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी एके सिंह बताते हैं नीम के पेड़ की मौजूदगी ही
फसलों को सुरक्षा देती है। वातावरण प्रदूषित नहीं होने पाता। नीम के
उत्पाद उन कीटों को नियंत्रित करते हैं जो फसलों में अवरोध पैदा करते हैं।
इससे हानिकारक कीटों के लार्वा भाग जाते हैं और वयस्क कीट नपुंसक हो जाते
हैं। गंधी, तना छेदक, सफेद मक्खी, माहू, सूंडी आदि के नियंत्रण में
प्रभावी है। निबौली, पत्ती, तेल और खली इसका हर अवयव उपयोगी है।
कैसे करें इस्तेमाल
पांच किलोग्राम नीम बीज [निबौली] को साफ कर उसकी गिरी निकाल लें। फिर
उसका पाउडर बनाकर रात भर करीब 10 लीटर पानी में मिलाकर रख दें। सुबह इस
घोल को डंडे से हिलाकर मिलाने के बाद महीन कपड़े में छानकर इसमें 100 ग्राम
कपड़ा धोने का पाउडर मिलाकर डेढ़ से दो सौ लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव
किया जा सकता है, जो एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।
इसी तरह 25 से 30 किलोग्राम नीम की ताजी पत्तियों को रातभर पानी में
रखने के बाद सुबह पीस-छानकर सत तैयार कर लें। इसमें भी 100 ग्राम कपड़ा
धोने का पाउडर मिलाकर 150 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में घोल का छिड़काव
कर सकते हैं। इसकी खली को पोटली बनाकर रात में पानी में रख दें। सुबह
उपर्युक्त विधि से 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। एक एकड़ के लिए
10 किलो खली चाहिए। इसी तरह नीम तेल का छिड़काव होता है।
अनाज की सुरक्षा के लिए भंडारण के समय प्रयोग वाले जूट के बोरों का दस
फीसदी हिस्सा नीम गिरी के घोल में 15 मिनट भिगोने के बाद छाया में सुखा
लें। जहां भंडारण होना है, उस स्थान पर भी घोल का छिड़काव करें।
क्या बरतें सावधानी
-नीम का तेल पानी में सीधे नहीं घुलता है, लिहाजा पहले उसे दो से पांच लीटर गोमूत्र में मिलाकर फिर पानी में डालें।
-छिड़काव सुबह एवं देर शाम में करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
-सर्दियों में दस दिन और वर्षा ऋतु में दो से तीनदिन में छिड़काव अच्छा है।
-पौधों की पत्तियों के निचले सिरे पर भी छिड़काव जरूरी है।
-अधिक गाढ़े घोल की अपेक्षा हल्के घोल का कम दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
-बनाए गए घोल का प्रयोग यथाशीघ्र करना चाहिए।