बड़े पैमाने पर चुनाव होता है। लेकिन लोकतंत्र का मतलब चुनाव नहीं होता,
लोकतंत्र का मतलब होता है देश के फैसलों में जनता की भागीदारी और इस कसौटी
पर देखें तो अपने देश में लोकतंत्र नहीं है-‘’सीधे ,सपाट और किसी
आंदोलनकारी के मुंह से निकलने का आभास देते शब्द। लेकिन ये शब्द जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट के जज पी वी (रिटायर्ड) सावंत के हैं। इन्हीं शब्दों में
गुजरे 9 से 11 अप्रैल के बीच दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में चली एक
जनसुनवाई के अंतिम दिन ज्यूरी ने अपना फैसला सुनाया।
नागरिक संगठन, सामाजिक आंदोलन,सरोकारी विद्वान और नागरिकों के एक समूह
द्वारा जबरिया जमीन हथियाने, संसाधनों की लूट और ऑपरेशन ग्रीन हंट के
मुद्दे पर आयोजित तीन दिन की इस जनसुनवाई में छत्तीसगढ़ ,झारखंड और उड़ीसा
सहित देश के विभिन्न आदिवासी अंचलों में भू-अधिग्रहण और प्राकृतिक
संसाधनों की जबरिया लूट के खिलाफ सक्रिय आंदोलनकारियों के लगातार तीन दिन
तक अनुभव सुनकर द्रवित ज्यूरी ने कहा कि देश में बड़े पैमाने पर गरीबों,
खासकर आदिवासी अधिकारों का हनन हो रहा है और पूरी कार्यपालिका और
न्यायपालिका इस घड़ी में ऐसा जान पड़ता है कि आदिवासियों के दुखों से मुंह
फेरे हुए है।
ज्यूरी ने माना कि उदारीकरण के बाद के सालों में आदिवासियों के अधिकार
की घटनाओं में अप्रत्याशित रुप से बढ़ोतरी हुई है। संविधान के पांचवी
अनसूची में दिए गए आदिवासी अधिकार(पेसा कानून) और वनाधिकार कानून का
व्यापक रुप से उल्लंघन हो रहा है।
ज्यूरी के सदस्यों ने अपने फैसले में नोट किया कि नई आर्थिक नीतियों
के दौर में विकास का जो मॉडल अपनाया गया है उसमें सरकार सक्रिय रुप से
जल,जंगल और जमीन जैसे संसाधन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खनन कार्य के लिए
दे रही है जबकि ये संसाधन आदिवासी जनता के जीवन और जीविका के लिए अहम हैं।
ज्यूरी ने फैसले में याद दिलाया कि देश में मौजूद आदिवासियों की तादाद
योरोप के कुछ देशों की कुल आबादी से भी ज्यादा है और जातीय विभिन्नता के
एक अहम साक्ष्य के तौर पर देश की मानवता की विरासत है।पर्यावरण पर पड़ने
वाले असर को छोड़ दें तो भी प्रॉकृतिक संसाधनों को लेने के लिए सरकार
पुलिस के सहारे जितनी बड़ी आबादी(आदिवासी) पर जुल्म कर रही है वह लोकतंत्र
के इतिहास में अभूतपूर्व है।
जनसुनवाई में ज्यूरी के सदस्य थे- जस्टिस पी वी सावंत(रिटायर्ड),
जस्टिस एच सुरेश (रिटायर्ड),डाक्टर वी मोहिनी गिरी, प्रोफेसर यशपाल,डॉक्टर
पी एम भार्गव और रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर डॉक्टर के एस सुब्रम्हण्यम ने अपने
एक साझे बयान में अफसोस जताया कि जबरिया विस्थापन और संसाधनों की
कारपोरेटी लूट के विरोध में आदिवासियों के शांतिपूर्ण आंदोलन को भी सरकार
पुलिस और अर्धसैन्यबलों की मदद से दबा रही है।ज्यूरी ने चेतावनी के स्वर
में कहा कि आदिवासियों के अधिकारों की सम्पूर्ण उपेक्षा और सैन्यबलों की
कार्रवाई जारी रही तो विधि के शासन और इंसाफ की मांग को लेकर देश एक हिंसक
क्रांति का रास्ता के रास्ते पर जा सकता है जैसा कि फ्रेंच, रुसी और
अमेरिकी क्रांति में हुआ था।
ज्यूरी के सिफारिशें-
1. ग्रीनहंट की समाप्ति और स्थानीय लोगोंसे बातचीत का रास्ता अपनाया जाय़।
2. खेतिहर जमीन और वनभूमि के अधिग्रहण पर त्वरित रोक। आदिवासी जनता का जबरिया पलायन तुरंत रुकना चाहिए।
3. संबंधित इलाके के हर एमओयू तथा औद्योगिक और संरचनागत परियोजनाओं के
ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाय।गृहमंत्रालय सविस्तार बताये कि उसने खेतिहर
जमीन के गैरखेतिहर इस्तेमाल के लिए कितने प्रस्तावों की मंजूरी दी है।
4. जबरिया विस्थापन की शिकार आदिवासी जनता को उनके परंपरागत परिवेश और जमीन पर फिर से बसाया जाय।
5. पर्यावरण को नुकासन पहुंचाने वाले हर उद्योग पर रोक लगे। जो जमीन ग्रामसभा की अनुमति के बगैर ली गई है उसे लौटाया जाय।
6. अर्धसैन्य बल स्कूलों और अस्पतालों से हटाये जायें।.
7. विरोध के स्वर बुलंद करने और सरकारी कदम पर प्रश्न उठाने वालों पर अत्याचार बंद हों।
8. विकास का जो मॉडल शोषणकारी, असमानता को बढ़ावा देने वाला और
पर्यावरण के विनाश पर टिका हो उसकी जगह जनभागीदारी को प्रश्रय और
खेतीबाड़ी को बढ़ावा देने वाला मॉडल अपनाया जाय़।
9.
सुनिश्चित किया जाय कि भूसंपदा और वनभूमि का कोई भी इस्तेमाल आदिवासी जनता
की भागीदारी और उनकी सहमति के बाद ही हो जैसा कि संविधान में कहा गया है।
10. नागिरकों का एक विशेष अधिकार प्राप्त आयोग गठित किया जाय जो
आदिवासियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की
तजबीज करे । आयोग को यह अधिकार भी दिया जाय कि वह आदिवासियों को सरकारी
योजनाओं से मिलने वाले लाभ उन तक पहुंचा सके।