जो खर्च न हुआ, वह पैसा किस काम का?

नई
दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। जेब में पैसा हो लेकिन खर्च न किया जाए या खर्च
हो न पाए तो बताइए वह किस काम का? जाहिर है, किसी काम का नहीं।
अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे बहुक्षेत्रीय विकास
कार्यक्रम [मल्टीसेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम] के तहत राज्य सरकारों को
केंद्र से पर्याप्त पैसा मिला। लेकिन वह इस समुदाय के किसी काम नहीं आया
क्योंकि राज्यों ने इस पैसे का 20 फीसदी हिस्सा भी खर्च नहीं किया।

राज्य सरकारें अमूमन केंद्र पर शिक्षा व विकास कार्यो के लिए धन न
देने का आरोप लगाती हैं। लेकिन अल्पसंख्यकों के मामले में यह बात उलटी है।
अल्पसंख्यक, खासतौर से मुस्लिम बहुल जिलों में बहुक्षेत्रीय विकास
कार्यक्रम के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और आवास जैसे मदों में विकास
कार्यो के लिए केंद्र ने राज्यों को सिर्फ अपने हिस्से के लगभग 1,244 करोड़
रुपये दिए। लेकिन बीते 31 मार्च तक इस पैसे में से राज्यों की सरकारों ने
सिर्फ 235 करोड़ [लगभग 20 प्रतिशत] रुपये ही खर्च किए। इस वजह से
अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही विकास योजनाएं जमीन पर नहीं आ सकीं।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि केंद्र ने उत्तर
प्रदेश के लिए इस कार्यक्रम के तहत 662.55 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को
मंजूरी दी। इसमें से केंद्र को 571.08 करोड़ रुपये देने थे। उसने राज्य
सरकार को 418.77 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए। लेकिन पिछले वित्तीय वर्ष में
राज्य ने इस पैसे में से सिर्फ 129.22 करोड़ [लगभग 31 प्रतिशत] रुपये ही
खर्च किए। राज्य सरकार ने इन परियोजनाओं के लिए अपना कितना अंशदान मिलाया,
इसकी तो जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। पश्चिम बंगाल में तो दर्जनभर
अल्पसंख्यक बहुल जिलों के लिए केंद्र से उपलब्ध धन का केवल 12 प्रतिशत ही
पूरे साल में खर्च हो पाया।

इसी तरह बिहार और झारखंड की स्थिति रही। बिहार के लिए मंजूर 244.65
करोड़ की परियोजनाओं के मद्देनजर केंद्र ने अपने हिस्से के 121.79 करोड़
रुपये जारी कर दिए। लेकिन खर्च हुए सिर्फ 13.50 करोड़ [लगभग 11 प्रतिशत]।
वहीं, झारखंड के लिए केंद्र ने बीते साल जून व दिसंबर और इस साल 30 मार्च
तक कुल 44.29 करोड़ रुपए जारी किए। लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र को यह
बताना भी जरूरी नहीं समझा कि उसने इस पैसे का किया क्या? दरअसल,
अल्पसंख्यकों के बारे में राज्यों का नजरिया जानने के लिए इतना ही काफी है
कि ज्यादातर उनके बारे में केंद्र को कुछ बताना ही नहीं चाहती।

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