या यूं कहो! इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है

हाजीपुर।
एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में, या यूं कहो! इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान
है। जी हां, हम बात कर रहे है वैशाली जिले के पातेपुर विधानसभा क्षेत्र से
विधायक रह चुके बालेश्रवर सिंह पासवान की। आसमां है चादर, सोते हैं सुकून
से जमीं को बिस्तर बना। टिन शेड का छोटा सा चार कमरों का घर। पैदल घूमते
हैं शहर में। न किसी से दुश्मनी और न किसी का भय। पास में पूंजी है
ईमानदारी की।

पेंशन से किसी तरह घर चल जाता है। मन में अब कुछ खास पाने की लालसा भी
नहीं है। काग्रेस की हुकूमत में 1985 से 90 तक पातेपुर [सुरक्षित]
विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे पासवान वैसे तो हाजीपुर सदर प्रखंड के
चकभटंडी [धरहारा] के रहने वाले हैं, लेकिन हाजीपुर शहर के रामजीवन चौक पर
चार कमरों के टिन शेड के छोटे से मकान में रहते हैं। गाव में थोड़ी बहुत
खेती है जिससे कुछ अनाज मिल जाता है। खेती भी स्वयं करते हैं। हालांकि,
लागत के अनुरूप उपज नहीं मिलती। खेतों में स्वयं काम करने में संकोच नहीं।
पूर्व विधायकी की आठ हजार पेंशन मिल जाती है जिससे गुजारा हो जाता है। दो
बेटे है। एक स्नातक तो दूसरे ने दिल्ली से बीबीए की पढ़ाई की लेकिन नौकरी
किसी को नहीं मिली। लिहाजा दोनों शादीशुदा बेटे पिता की पेंशन पर ही
आश्रित हैं। लगभग 65 वर्ष के हो चुके पासवान पैदल घूमना पसंद करते हैं।

दैनिक जागरण से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि इससे सुकून मिलता है।
न किसी से कोई भय और न आज तक किसी से कोई दुश्मनी। सार्वजनिक जीवन में कोई
गलत काम नहीं किया। उनके पास जो भी पूंजी है वह उनकी ईमानदारी है, जिसकी
बदौलत चैन की नींद सोते हैं। जब वे विधायक थे तब भी बस से हाजीपुर से
पातेपुर [क्षेत्र] जाते थे और काम-धाम करके लौट आते थे। ज्यादा जरूरी हुआ
तो किसी के यहा जो कुछ मिला खा लेते थे और वहीं सो जाते थे। शरीर पर मटके
का कुर्ता, जो कई जगहों से फटा था के बारे में पूछने पर कहते हैं कि जब
विधायक था तो वेतन-भत्ते की राशि से बनवाया था। सुरक्षित रखा हूं। आज भी
जब बाहर निकलना होता है पहन लेता हूं।

वर्तमान राजनीति की चर्चा करने पर अचानक वे गंभीर हो जाते हैं और भारी
मन से कहते हैं अब वह बात नहीं। दलों की भी स्थिति अच्छी नहीं रही,
निष्ठावान कार्यकर्ताओं की कोई पूछ नहीं है। 1990 में राम सुंदर दास से
चुनाव हारने के बाद फिर उस ओर नहीं देखा। काग्रेस को भी अलविदा कह दिया।
हालांकि,1995 में उनका झुकाव नीतीश कुमार की ओर हुआ। तब से समता पार्टी
एवं उसके बाद बनी नई पार्टी जनता दल यूनाइटेड से जुड़े हुए हैं। कहते हैं
कि 14 वर्षो से नीतीश कुमार के साथ हूं, स्वच्छ छवि के नेता हैं। काग्रेस
में वापसी के संबंध में पूछने पर कहते हैं कि अब जहा हैं, जिस विचारधारा
के साथ हैं वहीं रहेंगे। दल बदलने का सवाल हीनहीं है। बताते हैं कि जिस
समय वे विधायक थे, उसी समय नीतीश कुमार भी पहली बार विधायक बने थे, हम उस
वक्त सत्ता में थे और वे विपक्ष में, पर आज साथ-साथ हैं।

हालांकि, वे नीतीश शासन में जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की शिकायत
करते हैं और बेबाक कहते हैं कि इस तरह से कोई भी दल बहुत दिनों तक नहीं चल
सकता।

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