जो लौट के फिर ना आएंगे

लखनऊ
[जागरण ब्यूरो]। छत्तीसगढ़ में मंगलवार को लाल सलाम वालों के मुखालिफ खूनी
जंग में बरेली और बदायूं के भी दो लाल शहीद हो गए। इनमें बरेली के फरीदपुर
थाना क्षेत्र के खेमू नगला गांव का नेत्रपाल सिंह यादव और बदायूं के
गुन्नौर इलाके का जमीतुल हसन शामिल है। दोनों सीआरपीएफ मेंहवलदार थे।

हवलदार नेत्रपाल सिंह खेमू नगला के अतिराज सिंह यादव के बड़े पुत्र थे।
गत पांच दिसंबर से 28 जनवरी तक की छुट्टी पर आए थे तो 18 साल की बेटी सोनी
के हाथ पीले करने का ताना-बाना बुन गये थे। कह गए थे कि सयानी बेटी को
ज्यादा दिनों तक घर में नहीं रखेंगे। अब विदा करके एक जिम्मेदारी पूरी कर
लेंगे, लेकिन उनकी यह तमन्ना नहीं पूरी हुई।

पांच मार्च को फोन पर अपने बड़े बेटे 17 साल के विशाल तथा पत्नी अंजू
यादव से बात की थी। बताया था कि छुटटी के लिए दी गई अर्जी मंजूर हो गई है
और मेडिकल होने के बाद ही अवकाश पर जाएगा। नेत्रपाल के तीन बच्चों में
बेटी सोनी और दो बेटे विशाल [17] व लकी [10] शामिल हैं।

इस नक्सली हमले में शहीद हुआ रुहेलखंड का दूसरा जवान जमीतुल हसन है।
बदायूं जिले के गुन्नौर इलाके का निवासी सीआरपीएफ का 48 वर्षीय यह जवान
चार बेटियों और एक बेटा का पिता था। पिछले एक साल से छत्तीसगढ़ के नक्सल
प्रभावित इलाके में तैनात था।

पापा ने कहा था, ठीक से रहना

रामपुर। ड्यूटी पर जाने से पूर्व हवलदार श्याम लाल ने अपने इकलौटे
बेटे से मोबाइल पर बात की थी। उसे समझाते हुए कहा था-बेटा मैं एक आप्रेशन
पर जा रहा हूं, तुम ठीक से रहना..। आज जब दयाशंकर ने अपने पिता के ये
आखिरी शब्द दोहराए तो उसका गला रुंध गया और आंखें डबडबा गई। कक्षा छह में
पढ़ रहा दयाशंकर शहीद जवान श्याम लाल का इकलौता बेटा है। दयाशंकर की दो
बहनें भी हैं।

दयाशंकर ने बताया कि 25 मार्च को पापा घर से ड्यूटी पर गए थे। दो दिन
पहले ही शाम को फोन किया था और कहा था तुम ठीक से रहना। दयाशंकर की आंखों
से आंसू रुक नहींरहा है, लेकिन फिर उसे अपनी बहनों का खयाल आता है और वह
उन्हें चुप कराने में लगता है। पूरा परिवार का रोते रोते बुरा हाल हो गया
है।

फरवरी में घर से आखिरी विदाई थी सतीश की

अमरोहा [जेपीनगर]। देश के सबसे बड़े नक्सली हमले में शहीद हुआ सतीश
चंद्र जनवरी में 15 दिन की छुट्टी पर घर आया था। फरवरी में वह छत्तीसगढ़
गया। परिजनों से यही मुलाकात उसकी अंतिम साबित हुई। इसी माह वह वापस
ड्यूटी पर लौट गए थे। वह छत्तीसगढ़ की हर परिस्थिति के बारे में परिजनों
को आकर बताते थे। अब उनकी मुलाकात ही परिजनों के जीने का सहारा हैं। इसी
जिले का एक और जवान तारा सिंह भी शहीद हुआ है। गांव में अकेला तारा सिंह
ही सरकारी नौकरी में था। उसकी शहादत से गांव में मायूसीछाई हुई है। पूरे
दिन गांव में किसी घर में चूल्हा नहीं जला।

दो माह पहले ही हुई थी शादी

बाह [आगरा]। चित्राहाट थाना क्षेत्र के नौगवां के 23 वर्षीय निर्वेश
सिंह 2007 में रामपुर में सीआरपीएफ में भर्ती हुआ। तैनाती के वक्त से
निर्वेश नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात था। नक्सली हमले में शहीद हुए
जांबाज निर्वेश की शादी सात फरवरी 2010 को हुई थी। अभी उसकी गौने की विदाई
भी नहीं हुई है। अभी 20 रोज पहले ही निर्वेश गांव से 15 दिन की छुट्टी
बिताकर गया था।

संभल के भी दो जांबाज शहीद हुए हैं। असमोली थानांतर्गत गांव दुगावर के
अमित कुमार सिंह और गांव हाजीबेड़ा का महेंद्र कुमार शहीद हुए हैं। अमित
कुमार के पिता ने बताया कि उन्होंने इसी साल बिटिया की शादी होने वाली थी।

एक तरफ परीक्षा दूसरी तरफ अंतिम संस्कार

लखनऊ। अमौसी एयरपोर्ट पर जब सीआरपीएफ के जवान और अधिकारी शहीदों के
पार्थिव शरीर को उनके पैतृक निवास भेजने की तैयारी कर रहे थे, उस भीड़ से
गुजर रहे एक युवक पर सबकी नजरें टिक गईं। मायूसी के साथ उसकी आंखें किसी
को खोज रही थी। यह युवक अंबेडकर नगर निवासी शहीद सब इंस्पेक्टर बृजेश
कुमार तिवारी का बेटा देवेंद्र था। देवेंद्र लखनऊ के कान्यकुब्ज कालेज से
बीकाम प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा है। परीक्षा न छोड़ने की लाचारी और पिता
की अंत्येष्टि में शामिल न होने की बेबसी उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।
गुरुवार को परीक्षा होने के कारण देवेंद्र पिता के अंतिम संस्कार में
शामिल नहीं हो सकता था, इस कारण अंतिम दर्शन करने के लिए वह एयरपोर्ट
पहुंच गया।

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