काकोरी
[जासं]। गुणों की खान जामुन के शौकीनों के लिए एक अच्छी खबर है। अब वे
बगैर गुठली के जामुन का लुत्फ उठा सकेंगे। बिल्कुल काले अंगूर की तरह की
जामुन। गुठली रहित होने के कारण जूस तैयार करने में भी आसानी होगी। इस
प्रजाति की जामुन कृषि वैज्ञानिक लगभग विकसित कर चुके हैं, लेकिन बड़े
पैमाने पर पैदावार में अभी दो साल लग सकते हैं।
केंद्रीय उपोषण एवं बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा [लखनऊ] के कृषि
वैज्ञानिक एके सिंह ने बताया कि भारतीय कृषि प्रबंध संस्थान के नेशनल
नेटवर्किंग प्रोजेक्ट आन अंडर यूटीलाइज्ड एग्रीकल्चर प्रोग्राम के अंतर्गत
शोध के लिए देश भर से जामुन के 40 जर्म प्लाज्म एकत्र किए गए। इसमें गुठली
रहित जर्म प्लाज्म विंध्याचल के पहाड़ी क्षेत्र में लगे जामुन के पेड़ों से
लिया गया। इसमें वानस्पतिक प्रवर्धन [कलम] द्वारा मानकीकरण किया गया।
जामुन की इस प्रजाति को सीआईएसएचजे-42 नंबर दिया गया। संस्थान में
जामुन के ब्लाक स्थापित कर फलंत प्रक्रिया का अध्ययन किया जा रहा है।
गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र के शोध संस्थानों में भी इस पर अध्ययन हो रहा
है। गुठली रहित जामुन नामकरण के बाद खेती के लिए किसानों को उपलब्ध होगा।
किसान इसे कलम द्वारा पैदा कर सकेंगे। उनके अनुसार किसानों तक पहुंचने में
इसे करीब दो वर्ष का समय लगेगा। एके सिंह ने बताया कि फल तोड़ने में आसानी
हो, इसलिए आकार नियंत्रण पर भी शोध चल रहा है। बहरहाल, अपने कार्य को लेकर
कृषि वैज्ञानिक बेहद उत्साहित हैं।
अधिक दिनों तक संग्रह
सामान्य जामुन जहां तीन से चार दिन तक ही रखी जा सकती है वहीं बगैर
गुठली वाले जामुन आठ से 10 दिन तक स्टोर की जा सकती है। कम ताप पर इसे 25
से 30 दिन तक रखा जा सकता है।
खासियत
वजन : 2.5 से 3 ग्राम
लंबाई : 8 से 10 सेंटीमीटर
मोटाई : 2 से 2.5 ग्राम
गूदा : 99 प्रतिशत तक
मिठास : 16 से 18.1 टीएसएस
टैनिन : 0.7 प्रतिशत
एंटी ऑक्सीडेंट: 15 मिग्रा
बगैर गुठली वाले जामुन में अन्य लाभदायक मिनरल भी पाए गए हैं। जामुन
की इस प्रजाति में टैनिन की मात्रा होने से यह मधुमेह रोगियों के लिए
विशेष रूप से फायदेमंद होगी।