सासाराम
[कार्यालय प्रतिनिधि]। जिले में कभी ओझा गुनी बीमारों का इलाज करते थे और
सरकारी अस्पताल बदहाली का रोना रोते थे, लेकिन नए निजाम में व्यवस्था के
बदले अंदाज ने इस तथ्य को बदल डाला है। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की
बढ़ती भीड़ इस बात की गवाह है कि लोगों का विश्वास सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं
में बढ़ा है।
अंधविश्वासों पर यकीन करने वाले लोग यह समझने लगे हैं कि हर मर्ज की
दवा है। पहले लोग चेचक, पीलिया, सर्दी और बुखार होने पर ओझा-गुनी की शरण
में पहुंच जाते थे। अब इन बीमारियों का इलाज कराने लोग सीधे अस्पताल पहुंच
रहे हैं। जिसके चलते ओझा-गुनी भी अब रोजगार का दूसरा रास्ता तलाश करने लगे
हैं।
जिले के अस्पतालों में प्रसव से लेकर अन्य रोगों के इलाज के लिए भीड़
लगने लगी है। अमीर से लेकर गरीब तक तथा प्रबुद्ध वर्ग से लेकर अनपढ़ तक का
विश्वास सरकारी चिकित्सकों के ऊपर बढ़ गया है। अभी कुछ ही वर्ष पहले जिले
के अस्पतालों में एक लाख लोगों का भी इलाज नहीं हो पाता था। वहीं 25 लाख
जनसंख्या वाले जिले में इस वर्ष 10 लाख से अधिक मरीजों का इलाज सरकारी
अस्पतालों में हुआ। जबकि निजी अस्पतालों में भी आठ लाख लोगों का इलाज हुआ
है।
सिविल सर्जन डा. शिवानंद सिन्हा ने कहा कि गत एक वर्ष में ओपीडी में
10 लाख 42 हजार 86 मरीज देखे गए। 51510 रोगियों को अस्पताल में भर्ती कर
इलाज हुआ। 33352 महिलाओं का प्रसव कराया गया। पुरुष बंध्याकरण 436 व महिला
बंध्याकरण 11954 का हुआ। लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस भी
मना रहा है।
इस वर्ष का थीम ‘थाउजेंड सिटीज-डाउजेंड लाइव्स’ रखा गया है। शहरों को
स्वस्थ रखने के लिए वैश्विक आंदोलन का भाग बनने की अपील की गई है। जबकि गत
वर्ष जीवन बचाने के लिए आपातकालीन अस्पतालों के निर्माण पर बल दिया गया
था। 2008 में मौसम परिवर्तन के समय स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जन
जागरूकता अभियान चलाया गया। 2007 में ‘इन्टरनेशनल हेल्थ सेक्यूरिटी’ व
2006 में ‘वर्किंग टूगेदर फार हेल्थ’ पर बल दिया गया।
आइएमए के जिलाध्यक्ष डा. रामाशंकर तिवारी ने कहा कि लोगों में
स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा होने से अंधविश्वास की जड़ें कमजोर हुई है।
लोग अब यह समझ चुके हैं कि सभी मर्ज की दवा है। जिसके चलते अब पीलिया का
इलाज झाड़फूंक तथा चेचक का इलाज देवी गीत तक सीमित नहीं रहा। स्थानीय
महादलित बस्ती डोम टोली में अभी दो वर्ष पूर्व सर्दी जुखाम, बुखार, टीबी
होने पर ओझा गुनी मुर्गा की बलि देते दिखते थे। रोग को दैवीय प्रकोप बताते
हुए शराब चढ़ाते थे। पूरी रात ओझाई व झाड़फूंक होता था, लेकिन अब देवन डोम
भी कहते हैं कि डकढ़री में इलाज से रोग भाग जाता। दवाईओं मिलत बा। वाकई
देवन डोम के शब्द ओझा और तांत्रिकों के दिन पूरे होने की कहानी ही कहते
हैं।