मुजफ्फरपुर।
अप्रैल की शुरुआती गर्मी ने मनुष्य व जानवरों के हलक ही नहीं पेट पर भी
आफत ला दी है। पिछले साल आए सूखे के कारण इस साल जिले के ताल-तलैया सूख
गए। सरैया प्रखंड की हालत तो यह है कि जलसंकट के कारण अब धोबी कपड़ा नहीं
धो पा रहे और इनपर रोटी का संकट है। गंडक नहर भी पांच माह से सूखी है।
दियारा क्षेत्र में वन्य प्राणी प्यास से तड़प रहे हैं। नीलगायों का झुंड
पानी की तलाश में भटक रहा है पर प्रशासन मौन है, लेकिन मोतीपुर के
ग्रामीणों ने अपने इस ‘दुश्मन’ को बचाने का बीड़ा उठा लिया है। उन्होंने
पंपसेट से सूखे नालों में पानी भरना शुरू कर दिया है ताकि इनका वजूद
समाप्त न हो।
धोबियों ने भी खड़े किये हाथ
सरैया [मुजफ्फरपुर]। भीषण गर्मी, गिरते जलस्तर और तेजी से सूख रहे
तालाबों का असर सिर्फ हलक पर ही नहीं, रोजगार पर भी पड़ रहा है। इसकी बानगी
सरैया में देखने को मिल सकती हैं। यहां के धोबी कपड़ा धोने से हाथ खड़े कर
चुके हैं। अधिकतर नदी, नहर और नाले सूख गए हैं। कपड़ा धोकर रोटी जुटाने
वाले धोबियों के पास कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है।
लौंड्री चलाने वाले मजिस्टर बैठा, बंगाली बैठा और उमेश बैठा का कहना
है कि इलाके में कहीं भी पानी नहीं है। जिन नहरों, नलों में कपड़ा धोया
करते थे उनमें दरारें देखी जा सकती हैं। सो, लोगों से साफ कह देते हैं कि
कपड़ा धो कर लाइए, इस्त्री कर देंगे। जलस्तर गिरने के कारण चापाकल के सहारे
भी कपड़ा धोना संभव नहीं है। सरैया बायानदी में दरारें पड़ चुकी हैं।
जीर्णोद्धार के कारण गंडक नहर में पिछले पांच माह से पानी नहीं है। चौर
नाला में धूल उड़ रही है। सरैया के पूर्व वार्ड पार्षद अजय गुप्ता भी
स्वीकारते हैं कि इलाके के धोबी कपड़ा लेने से इनकार कर रहे हैं।
मालूम हो कि प्रखंड क्षेत्र में सरकारी पोखरों की संख्या करीब 35 है।
भीषण गर्मी के कारण सभी सूख गए हैं। हर गांव में करीब दस धोबी परिवार रहते
हैं। इनके समक्ष बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
दियारा जानवरों के लिए ‘काला पानी’
ताल-तलैयों के सूखने से ग्रामीण इलाकों में वन्य प्राणियों भी अब
प्यास से तड़पने लगे हैं। खासकर दियारा क्षेत्र इनके लिए ‘काला पानी’ साबित
हो रहा है। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक पारू, साहेबगंज और देवरिया मुख्य
रूप से दियारा क्षेत्र हैं। इसके अलावा मोतीपुर, औराई व कटरा के कुछ इलाके
भी दियारा क्षेत्र में तेजी से तब्दील हुए हैं। इन इलाकों में गर्मी आते
ही ताल-तलैये सूखने लगते हैं। इस बार स्थिति और भयावह है। वजह, पिछले साल
बारिश नहीं हुई थी। चहुंओर सूखा पड़ा। सो, ताल-तलैयों में पानी जमा ही नहीं
हो सका। ठंड में चूंकि हलक कम सूखता है, इसलिए वन्य प्राणियों को अधिक
परेशानी नहीं हुई। पर अभी से देह जला देने वाली गर्मी में नजारा कुछ और ही
है। वन्य प्राणी प्यास से तड़प रहे हैं। उन्हें कहींपानी नसीब नहीं हो रहा
है।
पारू में आलम यह है कि दियारा से भागकर सरेहों में आए नीलागायों का
जीवन खतरे में है। इन्हें यहां भी पानी नसीब नहीं हो रहा है। सरैया,
विशुनपुर सरैया, चांदकेवारी, धरफरी, कोइरिया निजामत, पारू दक्षिणी,
फतेहाबाद समेत कई पंचायतों के सरेहों में नीलगायों को पानी की तलाश में
भटकते देखा जा सकता है। सरैया निवासी उमाशंकर सिंह की मानें तो नीलगायों
का जत्था इस पोखर से उस पोखर में भटक रहा है, लेकिन पानी नहीं मिल रहा है।
थक हार कर वे पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं। अगर यही हाल रहा तो जल्दी ही इनकी
मौत का सिलसिला शुरू हो जाएगा। भीषण गर्मी में नीलगाय 10 से 12 घंटे ही
प्यास बर्दाश्त कर सकती है। हां, ठंड में यह क्षमता बढ़कर 24 घंटे हो जाती
है।
.. और ‘दुश्मन’ को भी आया तरस
मोतीपुर [मुजफ्फरपुर]। जी हां, इंसान और जानवर में यही बड़ा फर्क है।
इंसान जब महसूस करता है तो ‘दुश्मन’ से दोस्त भी बन जाता है और जानवर तो
बस जानवर ही..। इस फर्क को देखना हो, महसूस करना हो तो चले आइए मोतीपुर।
फसल चर जाने वाले वन्य प्राणियों से निबटने की गुहार लगाने वाले गांव के
किसान इस तपती गर्मी में वन्य प्राणियों की तड़प सहन नहीं कर पा रहे हैं।
जहांगीरपुर चौर में पानी के अभाव में तीन नीलगायों की मौत ने इन्हें
झकझोर कर रख दिया है। सो, नीलगायों को बचाने के लिए पूर्व विधान पार्षद
बालदेव महतो के अलावा मोहम्मद रुस्तम और मोहन प्रसाद केसरी ने पंपसेट
लगाकर सूखे नालों में पानी भरवाना शुरू कर दिया है। पूर्व विधान पार्षद के
नेतृत्व में बही, चुरमनिया व गोखुला चौरों में अपने स्तर से पंपसेट द्वारा
पानी की व्यवस्था कराई गई है। इस कार्य में ग्रामीण भी उनका हाथ बंटा रहे
हैं। यहां नीलगाय, गीदड़, लोमड़ी, शाही, खरगोश, बनकीटांश, मालवर, गोह सहित
कई छोटे वन्य प्राणी प्यास बुझा रहे हैं।
ग्रामीणों की मानें तो पूरे प्रखंड क्षेत्र में दर्जनभर चौरों में एक
बूंद पानी नहीं है। वन्य प्राणी दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गए हैं। महतो
ने डीएम से वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए आपदा कोष से जगह-जगह पानी की
व्यवस्था कराने की मांग की है।