पटना ग्रामीण इलाकों में होने वाली हिंसा की
अधिकांश घटनाओं के मूल में भूमि संबंधी विवाद रहे हैं। शहरी इलाके भी इससे
प्रभावित हैं। इस परेशानी को दूर करने के लिए सरकार ने ठोस पहल करते हुए
प्रासंगिक कानून में संशोधन करते हुए भूमि विवाद निराकरण अधिनियम बनाकर
इससे संबंधित नियमावली भी बना ली है। इसे एक अप्रैल के प्रभाव से लागू कर
दिया गया है।
दरअसल भूमि विवाद को लेकर एक आम धारणा है कि फैसले के लिए सालों इंतजार
करना होगा। निराकरण अधिनियम से अब फैसले के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना
होगा। भूमि सुधार उप समाहर्ताओं को इसके लिए अधिकार सम्पन्न बना दिया गया
है। नये कानून के तहत भूमि सुधार उप समाहर्ता को सक्षम प्राधिकार घोषित
किया गया है। किसी भूमि विवाद के मामले पर इन्हें तीन माह के भीतर निर्णय
करना होगा। इन्हें इस हद तक न्यायिक शक्ति प्रदान की गयी है। समयबद्ध
तरीके से मामलों का निष्पादन नहीं करने पर सरकार इनकी भी नकेल कसेगी।
जिलाधिकारी को उनके कामों की मानीटरिंग का जिम्मा मिला है। परफार्मेस ठीक
नहीं रहेगा तो वे तथ्यों, आंकड़ों सहित एक मुहरबंद लिफाफे में राजस्व एवं
भूमि सुधार विभाग को आवश्यक कार्रवाई के लिए रिपोर्ट करेंगे।
भूमि सुधार उप समाहर्ता के फैसले के खिलाफ प्रमंडलीय आयुक्त के यहां
अपील की जा सकती है। बताया गया कि सरकार विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों
को भी इनके अधीन स्थानांतरित करेगी ताकि उनका त्वरित निपटारा हो सके। इतना
ही नहीं भूमि विवाद संबंधी मामलों के निपटारे के लिए बिहार भूमि
न्यायाधिकरण नियमावली का भी निर्माण किया है। हाल के समय में सरकार जमीन
से संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए विभिन्न तरह के कदम उठा रही है।
जमीन संबंधी ब्योरे का कंप्यूटराइजेशन चल रहा है। दाखिल खारिज के लिए
अभियान भी काफी तेज है। प्रकारांतर से चकबंदी के लिए सरकार ने बदलैन की
जमीन को निबंधन-स्टाम्प शुल्क से मुक्त कर दिया है। औसतन करीब 8 फीसदी की
दर से शुल्क अदा करना पड़ता था। इससे अब लोगों को राहत मिलेगी वहीं चकबंदी
से खेती की सहूलियत बढ़ेगी।