का बरखा जब कृषि सुखाने

रामगढ़
[कैमूर]। जनप्रतिनिधियों की नजरअंदाजी तथा शासन-प्रशासन के आला अफसरों की
कथित तुगलकी नीतियों के चलते कैमूर जिले के रामगढ़ क्षेत्र के किसानों पर,
..का बरखा जब कृषि सुखाने वाली कहावत एकदम सटीक बैठ रही है।

किसानों को जब दरकार थी तब पानी छोड़ा ही नहीं गया और अब जब कृषि कार्य
के लिए आवश्यकता नहीं तो नहर में पानी ही पानी दिखने लगा। खून पसीना एक
करके किसानों ने किसी तरह गेहूं की फसल के लिए पटवन की। जहां के किसान
केवल नहरों पर आश्रित है उनकी गेहूं की फसल पानी के अभाव में सूख गयी।
आवश्यकता के समय नहरो में पानी पहुंचाने व छोड़ने के लिए किसी भी अधिकारी
ने पहल तक नहीं की।

पानी के अभाव में रबी की फसल को झुलसते देख किसानों ने सिंचाई विभाग
के अधिकारियों से लेकर सांसद एवं विधायक तक गुहार लगाई पर एक बूंद पानी
नसीब नहीं हो सका। उस समय सिंचाई विभाग के अधिकारी सोन नदी में पानी न
होने का रोना रोते रहे। अब जबकि किसानों के खेत में कटनी की बारी आयी है,
गर्रा चौबे नहर में पानी छोड़कर तबाही मचा दी गयी।

गर्रा चौबे के गोड़सरा वितरणी के बासुकीनाथ चौबे जो समिति के सचिव भी
है, ने बताया कि पानी से कटनी का काम तो बाधित हो ही गया, गेहूं व चने की
फसल भी उखड़ गयी हैं। यह एक विडंबना ही है कि जब पानी की आवश्यकता होती है
तब सिंचाई विभाग के अधिकारी चुप्पी साध लेते है और जब जरूरत नहीं होती है
तो नहरों में पानी छोड़कर किसानों को बेपानी कर देते है।

किसानों ने जिलाधिकारी से सिंचाई विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध
कार्रवाई की मांग की है। इस संबंध में दूरभाष पर संपर्क का प्रयास किए
जाने पर गर्रा चौबे नहर के अभियंता का मोबाइल का स्विच आफ मिला।

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