सिस्टम के गोडसों के लिए गोली है गांधी ग्राम

मुजफ्फरपुर
[अमरेन्द्र तिवारी]। एक गांव ऐसा जहां चलती है ‘अपनी’ सत्ता। मोतीपुर
प्रखंड में कुष्ठ रोगियों की बस्ती ‘गांधी ग्राम’ के लोगों ने अपने अधिकार
की प्राप्ति तथा आपसी विवाद के निपटारे के लिए अपना मुखिया, सरपंच तथा पंच
चुन लिया है। यह चुनाव भी पांच साल के लिए है। आपस का कोई मामला हो, सभी
मिलकर सलटाते हैं। कुष्ठ रोगियों तथा उनके परिजनों का यह प्रयास जिले में
एक अलग माडल बना हुआ है।

क्या है गांव का इतिहास:

राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या 28 के किनारे कुष्ठ रोगियों की बस्ती है
जिसे ‘गांधी ग्राम’ के नाम से जाना जाता है। 1995 में बसा यह गांव।
अलग-अलग जिलों से आई कुष्ठ रोगियों की टोली यहां बसी और इस बस्ती ने गांव
का रूप ले लिया। अभी यहां पचपन परिवार रहते हैं।

अपनी सत्ता के उत्तराधिकारी:

पिछले साल ‘गांधी ग्राम’ में हुए चुनाव में मुखिया पद पर कादिर, सरपंच
इस्माइल तथा पंच के लिए अशर्फी पासवान, महावीर पासवान, भिखारी राय, पिंकी
देवी तथा प्रेमशीला देवी चुने गए। इस नई व्यवस्था के प्रणेता तथा गांधी
ग्राम कुष्ठ कल्याण संघ एवं आश्रम के संस्थापक सोमेश्वर दुबे ने बताया कि
कि गांव का मामला गांव में सलटे तथा समाज एकजुट रहे, इसके लिए व्यवस्था
है।

बस्ती वालों को उपेक्षा का मलाल: मुखिया कादिर तथा सरपंच इस्माइल ने
बताया कि यह टोला मोतीपुर नगर पंचायत में आता है, लेकिन उनकी सुधि लेने
वाला कोई नहीं है। नगर पार्षद ने एक सोलर लाइट लगाकर अपना पिंड छुड़ा लिया।
इन लोगों की मांग है कि जमीन की बंदोबस्ती होनी चाहिए व मुफ्त अनाज के
वितरण समेत जो बुनियादी सुविधाएं चाहिए उसे सरकार पूरा करे।

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