नई दिल्ली। देश में निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक लंबित
मुकदमों के बढ़ते अंबार से हर तरफ चिंता है। हालात कितने गंभीर हैं इसका
अंदाजा खुद सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से लगाया जा सकता है। विशेष अनुमति
याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अगर इसी तरह हर
याचिकाओं को स्वीकार किया जाता रहा तो एक दिन खुद सुप्रीम कोर्ट इनके बोझ
से दब जाएगा।
खंडपीठ ने निचली अदालत और केरल हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध दायर की
गई एक विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई के दौरान कहा, ‘किसी भी अदालत या
न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए हर छोटे-बड़े आदेश के खिलाफ अगर सुप्रीम कोर्ट
में इसी तरह विशेष अनुमति याचिकाएं स्वीकार की जाती रहीं तो एक दिन
सर्वोच्च अदालत ही इन याचिकाओं के बोझ से ढह जाएगी।’
न्यायाधीशों ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में कहा कि आज हालत यह है
कि याचिकाओं के बढ़ते बोझ के चलते न्यायाधीशों को मामलों पर विचार करने का
पूरा वक्त तक नहीं मिलता। जबकि यह उनका अधिकार है और ऐसा न होने से ‘न्याय
की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।’
इस फैसले में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट
को निचली अदालतों/न्यायाधिकरणों के फैसले खिलाफ याचिकाएं स्वीकार करने का
अधिकार दिया गया है। लेकिन इस व्यवस्था का सावधानी से इस्तेमाल किया जाना
चाहिए। विशेष अनुमति याचिकाओं को संवैधानिक मामलों, मूलभूत अधिकारों के हनन
और न्याय में गंभीर खामी की स्थिति में ही स्वीकार किया जाना चाहिए।
बतात चलें कि वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट में करीब 70,000 मामले दायर
किए गए थे। इनमें बड़ी संख्या विशेष अनुमति याचिकाओं की ही थी। देश की
सर्वोच्च अदालत में इन सभी मामलों की सुनवाई हो रही है। जबकि अमेरिका की
सर्वोच्च अदालत हर साल सिर्फ 100 से 120 मामलों की ही सुनवाई करती है।
कनाडा की सबसे बड़ी अदालत में तो साल में सिर्फ 60 मामलों की ही सुनवाई होती
है।