शिमला
[रचना गुप्ता]। छोटा सा पहाड़ी प्रदेश हिमाचल गरीब हो रहा है। हालाकि
प्राकृतिक संपदा से लबरेज राज्य की आमदनी वर्ष दर वर्ष घट रही है, लेकिन
यह भी हकीकत है कि यहा के लोग मालामाल हो रहे हैं।
राज्य की कंगाली के पीछे का कारण है लोगों का कृषि से मोह भंग होना और
लोगों की अमीरी यानी प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की वजह है नौकरियों व
उद्योगों में दिलचस्पी लेना। आजीविका में बदलाव का ही नतीजा है कि राज्य
की विकास दर घटती जा रही है और प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है। ये चौंकाने
वाले तथ्य हिमाचल के आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से आए हैं, जिसे
मुख्यमंत्री ने गुरुवार को विधानसभा में रखा।
यह आर्थिक विवशताओं और प्राथमिकताओं में बदलाव का ही नतीजा होगा जब
पहाड़ियों की थाली से मक्की की रोटी गायब हो जाएगी। क्योंकि प्रदेश में गत
चार साल में मक्की की पैदावार 47 फीसदी घट गई है। और तो और आलू उत्पादन का
आलम भी ठीक नहीं है। 2007 में 163000 टन आलू के मुकाबले 2009 में केवल
61000 टन आलू हुआ। लगभग ऐसी ही हालत चावल, गेहूं व चने की है। सरकारी
डिपुओं के माध्यम से मिलने वाला सस्ता चना प्रदेश में लोग पैदा नहीं कर
रहे।
हा, हिमाचली बेमौसमी सब्जियों को तवच्जो दे रहे हैं। सर्वेक्षण रपट के
मुताबिक चार वर्षो में प्रदेश में 10 से 15 फीसदी सब्जी की पैदावार बढ़ी
है। अर्की के रहने वाले किसान बाबूराम कहते हैं मक्की की फसल बंदर चट कर
जाते हैं, मौसम भी कभी साथ नहीं देता ऐसे में कमाई नहीं होती। इसीलिए
पॉलीहाउस में बेमौसमी सब्जी उगा लेते हैं क्योंकि इसका बाहर दाम बढि़या
मिलता है।
यही हाल बागवानी का भी है। क्रिस्पी व रसदार सेब वाले राज्य हिमाचल
में फलों का उत्पादन भी गिरा है। तीन साल पहले प्रदेश में करीब सात लाख टन
फल पैदावार, 2008 में छह लाख और इस वर्ष साढ़े तीन लाख टन रह गई है। सेब
उत्पादन भी इसी प्रकार कम हुआ है।
गौरतलब है कि राज्य की आय के चार अहम स्त्रोत कृषि, बागवानी, विद्युत
व पर्यटन हैं। कृषि व बागवानी से लोगों का मोहभंग हो चुका है और विद्युत
प्रोजेक्ट अभी आधे-अधूरे हैं। भले ही पर्यटकों का ग्राफ बढ़ा हो, लेकिन
इससे कमाई कितनी बढ़ी इसका ब्योरा सरकार के पास नहीं है। हालाकि पर्यटन
निगम के आला अधिकारी कहते हैं कनेक्टीविटी के अभाव में यहा सस्ता व वीक
एंड टूरिस्ट आता है। उनसे अच्छी कमाई की उम्मीद कैसे करें।
राज्य की अपनी आमदनी घट रही है। 2007-08 में विकास दर 8.6 प्रतिशत थी
जो 2008-09 में 7.4 और 2009-10 में 7.5 फीसदी हो गई। आर्थिक सर्वेक्षण
कहता है कि प्रदेश की जेब सबसे ज्यादा ढीली बागवानी ने की और उसके बाद
खाद्यान्नों ने। सरकार के लिए यही बात सुकून देने वाली है कि देश की
आर्थिक विकास दर 7.2 प्रतिशत के मुकाबले हिमाचल की दर 0.3 फीसदी ही सही
अधिक है।
विरोधाभास देखें कि राज्य मेंप्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। 2007-08 में
यह 40107 रुपये थी और अब 09 में यह 44538 हो गई। अर्थात प्रदेश का औसतन एक
व्यक्ति एक महीने में पहले 3342 रुपये कमाता था और अब 3711 रुपये कमाई
करता है। एक वर्ष में 369 रुपये की अधिक कमाई। वाकई गरीबी के बावजूद भी
अमीरी का रास्ता निकल रहा है!