महिला आरक्षण : चुनौतियों भरा रहा 14 साल का सफर

नई दिल्ली. महिला आरक्षण
विधेयक को 14 साल लंबे सफर में कई बाधाएं, कई चुनौतियों का सामना करना
पड़ा। इसे लेकर कई बार सदन में हंगामा हुआ, प्रतियां फाड़ी गईं, बदसलूकी
की गई और सदन के बाहर सरकार गिराने की धमकियां दी गईं। आइए जानते हैं कि 9
मार्च को राज्यसभा में पारित होने से पहले विधेयक को लेकर क्या-क्या
प्रमुख घटनाएं घटीं।

12 सितंबर 1996 : इस
ऐतिहासिक विधेयक को लोकसभा में सबसे पहले देवेगौड़ा सरकार ने रखा। लेकिन,
सहयोगियों में सहमति नहीं होने के कारण वह इसे पारित नहीं करा पाई।

1997 :
विधेयक के धुर विरोधी जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने संसद में कहा, ‘क्या आपको
लगता है कि ये छोटे बालों वाली महिलाएं हमारे घरों की महिलाओं के लिए आवाज
उठाएंगी?’

13 जुलाई 1998 : तत्कालीन कानून
मंत्री एम थंबीदुरई विधेयक पेश करने के लिए खड़े हुए, राजद सांसद सुरेंद्र
प्रसाद यादव ने स्पीकर जीएमसी बालयोगी के हाथों से उसकी प्रति छीन कर फाड़
दी।

1999 : एनडीए ने विधेयक पेश किया, लेकिन
कामयाबी नहीं मिली। एनडीए ने ही 2002 में इसे एक बार व 2003 में दो बार
पेश किया, लेकिन व्यर्थ रहा।

2004 : यूपीए सरकार ने इसे न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया।

2005 : भाजपा ने विधेयक को समर्थन का एलान किया, लेकिन उमा भारती के दबाव में उसे पीछे हटना पड़ा।

मई 2008 :
यूपीए ने इसे राज्यसभा में रखा। तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज से
समाजवादी पार्टी के एक सदस्य ने इसकी प्रति छीनने की कोशिश की। इस पर
केंद्रीय मंत्री रेणुका चौधरी ने उसे धक्का दे दिया, जिससे हंगामा हो गया।
भारद्वाज को सुरक्षित रहने के लिए महिला सदस्यों की मदद लेनी पड़ी।

दिसंबर 2009 : न्याय व कानून पर संसद की स्थाई समिति ने दिसंबर में इसे पारित करने की सिफारिश की।

25 फरवरी 2010 : केंद्रीय कैबिनेट ने इस पर मुहर लगाई।

9 मार्च 2010 : राज्यसभा में बहुमत से पारित हुआ।

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