तो अब नहीं मिलेगी तारीख पर तारीख

तारीख
पर तारीख, तारीख पर तारीख। जज साहब, यहां न्याय नहीं मिलता, मिलती है तो
सिर्फ तारीख। जीं हां, फिल्म दामिनी में बोला गया यह डायलाग लोगों को इस
कदर याद हो गया है कि जब भी किसी केस के जजमेंट में देरी की बात आती है तो
आदमी यही लाइन्स दोहराता है। पर अब एक राहत की बात यह है कि अगर सब कुछ
सही रहा तो लोगों को कोर्ट से तारीख पर तरीख नहीं लेनी पड़ेगी। उन्हें जल्द
ही न्याय मिलेगा। दरअसल, कानून मंत्रालय ने एक ऐसा बिल तैयार किया है
जिसके अंतर्गत जजों को किसी भी केस में बहस पूरी होने के तीन महीने के
अंदर अपना निर्णय सुनाना होगा।

कानून मंत्रालय के प्रस्तावित जुडिशियल स्टैंडर्ड एंड अकाउंटेबिलिटी
बिल 2010 का उद्देश्य न्यायिक सेवाओं में मानक स्थापित करना और ऐसा सिस्टम
बनाना है जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ
‘दु‌र्व्यवहार’ एवं ‘अयोग्यता’ की शिकायतों को दूर किया जा सके। कैबिनेट
की स्वीकृति के बाद इस बिल को वर्तमान बजट सत्र के दौरान इसे संसद के
समक्ष पेश किए जाने की संभावना जाएगा। इस बिल में जजों की प्रॉपर्टी और
रिंसपांसबिलिटी की घोषणा का भी प्रावधान किया गया है।

प्रभावित न हो जजमेंट

प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि बहस पूरी होने के तीन महीने के
टाइम पीरियड के अंदर जजों को अपना जजमेंट देना होगा। बिल के मसौदे में कहा
गया है कि उच्च न्यायिक सेवाओं के सदस्यों को अपने न्यायिक कार्य के दौरान
निष्पक्ष रहना चाहिए या उनके द्वारा दिए गए जजमेंट धर्म, नस्ल, जाति, लिंग
या जन्म स्थान से प्रभावित नहीं होने चाहिए।

अन्य सुझाव

इस प्रस्तावित कानून में जजों को अन्य सुझाव भी दिए गए है। इनमें कहा
गया है कि जज को अपने किसी जजमेंट के संबंध में मीडिया को इंटरव्यू नहीं
देना चाहिए। इसके अलावा जजों को पॉलिटिकल मैटर्स पर किसी पब्लिक डिबेट में
भाग नहीं लेना चाहिए।

शिकायत के लिए जांच समिति

इस बिल के अनुसार जजों द्वारा न्यायिक मानकों को गिराने वाले किसी भी
कदम को ‘दु‌र्व्यवहार’ माना जाएगा और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की
जाएगी। जज के विरुद्ध ‘दु‌र्व्यवहार’ या ‘भ्रष्टाचार’ की शिकायत को तीन
जजों की जांच समिति के समक्ष पेश किया जाएगा। जांच समिति यदि जज के खिलाफ
किसी शिकायत को वाजिब पाती है तो उसे न्यायिक निगरानी समिति के पास भेजा
जाएगा। यह समिति मामले की जांच कर जांच रिपोर्ट को प्रेसीडेंट के पास उस
जज के खिलाफ कार्रवाई के लिए भेजेगी। वाइस प्रेसीडेंट निगरानी समिति की
संभवत: अध्यक्षता करेंगे। इस समिति के अन्य सदस्यों में भारत के चीफ
जस्टिस, उनके द्वारा नामांकित हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और प्रेसीडेंट
द्वारा नियुक्त किए गए दो विधिवेत्ता शामिल होंगे।

तो महाभियोग भी

भारत के सभी 21 हाईकोर्ट में एक-एक जांच समिति का गठन किया जाएगा। जज
के दु‌र्व्यवहार के अनुसार उसे चेतावनी, फटकार या प्रतिबंध की सजा दी जा
सकती है, लेकिन यदि न्यायिक मानकों के उल्लंघन की प्रकृति गंभीरहै तो
उसके खिलाफ महाभियोग लगाया जा सकेगा। यह बिल न्यायधीश जांच कानून 1968 का
स्थान लेगा।

दिशा निर्देश

इस बिल के जजों पर शिकंजा कसते हुए उनके लिए कई दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं। जैसे..

ø इसमें कहा गया है कि जज इलेक्शन नहीं लड़ सकते।

ø वे किसी क्लब या संगठन के सदस्य नहीं हो सकते।

ø बार कांउसिल के किसी सदस्य के साथ घनिष्ठता नहीं बढ़ा सकते।

ø अपने रिलेटिव्स के अलावा और किसी से गिफ्ट या आतिथ्य नहीं स्वीकार कर सकते।

ø जज ऐसी कंपनियों के

मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते जिनके शेयर उनके पास हैं।

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इंडिया में इतने अधिक पेंडिंग केस ज्यूडशियरी सिस्टम पर सवालिया निशान
जरूर लगाते हैं लेकिन इसके पीछे एक बड़ा रीजन भी है। इंडिया में जजों का
टोटा है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, देश के सभी केस को साल्व करने के लिए
1500 हाईकोर्ट के जज और 23000 सबोर्डीनेट कोर्ट के जजों की जरूरत होगी।
इसके अलावा देश में जजों की कई पोस्ट वेकेंट हैं जिनपर काफी समय से
एप्वाइंटमेंट नहीं हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, देश के सभी
हाईको‌र्ट्स को मिलाकर कुल 268 जजों की पोस्ट खाली पड़ी है। सिर्फ इलाहाबाद
में 72 जजों की पोस्ट वेकेंट हैं जो कि कुल जजों का 45 परसेंट है। अब इस
हकीकत को जानने के बाद आखिर जल्दी न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
[जेएनएन]

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