कामयाबियों का किर्तीमान बना रही नारियां

सीतामढ़ी। मां जानकी की जन्म भूमि अब नारी शक्ति की धरती बन गयी है। चाहे
शिक्षा हो या राजनीति, समाज सेवा, लेखन, कला, खेल या जांबाजी। हर क्षेत्र
में सीतामढ़ी की महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाया है। कामयाबी का
यह सफर सिर्फ जिला, प्रदेश व देश स्तर पर ही नही, बल्कि विदेश में भी
कामयाबी का परचम लहरा कर महिला सशक्तिकरण का परिचय दिया है। देश की पहली
महिला आईपीएस किरण बेदी ने कभी अपनी पुस्तक में लिखा था कि-जब कोई महिला
घर की दहलीज पार करती है तो वह असुरक्षित हो जाती है। उस समय यह बात सही
साबित हुयी थी। तब महिलाओं का बाहर काम करना तो दूर घर से निकलना भी
मुश्किल था। समाज व परिवार की बंदिशे ऐसी कि घर की दहलीज लांघना भी संभव
नहीं था। घुंघट की ओट से घर के कार्य निपटाना उनकी मजबूरी थी। पारिवारिक
लिहाज ऐसा कि पति के सामने आना तो दूर दिन में बात करना जुर्म था। लेकिन
बदलते दौर में किरण बेदी के लिखे शब्द मिथक बन गए है। अब महिलाएं न केवल
आत्म निर्भरता की राह पर है, बल्कि पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल
रही है। कई क्षेत्रों में तो महिलाओं ने पुरुषों को काफी पीछे छोड़ दिया
है। सीतामढ़ी की नारियों ने तो कामयाबियों का सुनहरा इतिहास रचा है। वर्ष
1952 व 57 में सुदामा चौधरी ने पुपरी सीट पर लगातार जीत दर्ज कर विधान सभा
पहुंची। तो 1962 व 67 में प्रतिभा सिन्हा सुरसंड से जीत दर्ज करा राजनीति
में महिला भागीदारी को मजबूत करने में सफल रही। वर्ष 1962 में बथनाहा से
गिरजा देवी विधायक बनी। वर्तमान में गुडडी चौधरी व नगीना देवी विधायक है।
हालांकि सुनीता सिंह चौहान भी विस चुनाव जीती थी। लेकिन विस का गठन नही
होने के चलते बाद में चुनाव हार गयी थी। पूर्व जिप अध्यक्ष उषा किरण,
वर्तमान अध्यक्ष डा. रंजु गीता, पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष जयमुनी देवी के
अलावा आधा दर्जन प्रमुख व काफी तादाद में मुखिया, पंसस, वार्ड पार्षद, पंच
सरपंच के रूप में राजनितिक पारी खेल रही है। सीतामढ़ी की आशा खेमका
अमेरिका में समाज सेवा कर रही है। प्रभावती ने अपना जीवन विकलांग बच्चों
के नाम कर दिया है। महिलाओं को संगठित कर उन्हे आत्म निर्भर बनाने की डा.
संगीता दत्ता की मुहिम आज महिला समाख्या के रूप में क्रांति बन चूकी है।
साहित्य सृजन में लगी डा. आशा प्रभात ने अपनी रचनाओं के माध्यम से विदेशों
में भी अपना लोहा मनवाया है। लायनेस चेयर मैन सीमा गुप्ता ने गरीब बच्चों
के लिए स्कूल, विधवाओं के लिए सिलाई कटाई समेत रोजगार परक प्रशिक्षण
केंद्र चला कर समाज सेवा का अलख जगा रही है। शहर निवासी शोभा देवी ने बेहद
गरीबी के बीच न केवल अपना घर परिवार संवारा बल्कि शहर के नामी गिरामी
व्यवसायियों के बीच खुद को स्थापित किया। आज वह दीन-दुखियों की सेवा में
लगी हुयी है। यूनिसेफ बाला ललिता ने अपने नाम का डंका संसार में बजाने के
बाद अब नारी सशक्तिकरण के अभियान में लगी है। नारी सशक्तिकरण के कीर्तिमान
के दास्तानइतने ही नही है। महिलाओं के कामयाबियों की दास्तान लंबी है।

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