ग्रेटर
नोएडा। देश भले ही नारी सशक्तिकरण की बात कर रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश
की मुख्यमंत्री मायावती के गृह जनपद में जनप्रतिनिधियों के रूप में चुनकर
आई महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है।
गाव वालों ने महिलाओं को प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य व नगर
पंचायत के अध्यक्ष के रूप में चुनकर प्रतिनिधि बना तो लिया, लेकिन ये
महिलाएं घर व पर्दे से बाहर नहीं निकल सकीं। कोई इनसे बात करना चाहे तो
पति बात भी नहीं करने देते। पति ही उनकी जगह काम करते हैं। इतना ही नहीं
सरकारी बैठकों में भी पति व पुत्र ही हिस्सा लेते हैं।
अधिकतर महिला प्रतिनिधि चूल्हा जलाने व बर्तन साफ करने तक ही सीमित
हैं। जिले में ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत व नगर पंचायत सदस्य एवं
अध्यक्ष समेत कुल 723 जनप्रतिनिधि हैं। इनमें महिला जनप्रतिनिधियों की
संख्या करीब 260 है। इनमें से 90 प्रतिशत महिलाएं जनप्रतिनिधि बनने के बाद
भी घर का चूल्हा जला रही हैं। उनको पर्दा में रहकर ही किसी से बात करने का
अधिकार है। इस बात की गवाह सरकारी बैठक हैं। इनमें महिला की संख्या दो से
पांच प्रतिशत के बीच रहती हैं। उनकी जगह उनके पति, पुत्र व सुसर बैठकों
में भाग लेते हैं।
बैठकों से दूर रहती है महिला सदस्य-जिला पंचायत में कुल पंद्रह सदस्य
हैं। इनमें में से आठ महिला सदस्य हैं। हर तीसरे माह पंचायत की बैठक होती
है। जिला पंचायत अध्यक्ष बाला देवी कहना है कि बैठक में दो या तीन महिला
सदस्य आती हैं। जो आती भी हैं, वे अधिकांश समय चुप ही बैठी रहती हैं। इससे
कार्य करने में भी दिक्कत होती है।
सिर्फ दो महिला प्रधान आई बैठक में- गाव में विकास कार्यो की रूपरेखा
तैयार करने के लिए ब्लाक कार्यालय पर हर तीसरे माह ग्राम प्रधान व बीडीसी
सदस्यों की बैठक होती है। बिसरख ब्लाक प्रमुख ध्यान सिंह भाटी ने बताया कि
इस ब्लाक में 35 महिला प्रधान व 50 बीडीसी सदस्य हैं। पांच साल का
कार्यकाल दो माह बाद पूरा होने जा रहा है। इन पाच सालों में खेड़ी गाव की
प्रधान सरोज देवी व सैनी गाव की हरवती को छोड़कर कोई प्रधान बैठकों में
शामिल नहीं हुई। कई बार को बैठकों का कोरम भी पूरा नहीं हो पाता है।
चुप रहती है महिला सदस्य-दादरी ब्लाक प्रमुख बिजेंद्र सिंह भाटी ने
बताया कि उनके ब्लाक में 60 प्रतिशत महिला प्रधान बैठकों में नहीं आती
हैं। जो आती हैं, वे चुप बैठी रहती हैं। इससे विकास योजनाओं का एजेंडा
तैयार करने में दिक्कत आती है।