गोरखपुर
[संवाद सहयोगी]। उनका पैर नहीं है। मगर मनो बोझ लादे ठेला लेकर चलते हैं।
शरीर चौथेपन में पहुंचा है मगर हौसला ऐसा कि जवान भी मात खा जायं। 65 वर्ष
की उम्र है, यह काम नहीं आराम की उम्र है पर कुछ पूछिये तो मुस्कराते हुए
कहते हैं अभी तो मैं जवान हूं।
यह कहानी रामचंद्र चौहान की है। जिनका एक पैर नहीं है। एक पैर से ही
ठेला खींचते हैं। वह भी खाली नहीं बोझ लदा ठेला। उम्र और शारीरिक स्थिति
सब कुछ प्रतिकूल है। उम्र के चौथेपन में है। पर चेहरे पर बिना शिकन लाये
ठेला खींचकर रोटी कमा रहे हैं। रोज सुबह। जाड़ा, गर्मी हो या झमाझम बारिश
का मौसम। रामचंद्र के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस जानते हैं कि काम
पूजा है जिससे दो वक्त की रोटी और इज्जत मिलती है। दोनों ओर कांख में
बैशाखी दबाकर वे निकल पड़ते हैं रोज के सफर पर।
मेहनत मजदूरी में ही उन्होंने अपनी एक टांग गंवाई थी। जवानी में
थ्रेशर मशीन पैर पर गिर गई, जिससे बायी टांग बेकार हो गई। घाव ठीक होने
में महीनों लग गये। एक बार चिंता हुई थी कि लंबा चौड़ा कुनबा पैर बिना कैसे
पालेगें। मगर हिम्मत कर उठ खड़े हुये। एक पांव से ही ठेले को साध लिया।
अपनी कठोर मेहनत के बल पर बिना किसी के आगे हाथ फैलाये बच्चों को पाल
लिया।
चार बच्चे पृथ्वीपाल, लल्लू, झीनक व खुड़बुड़ हैं, जिसमें दो की शादी हो
गई है। ठेला चलाकर इस महंगाई में इतनी कमाई नहीं होती कि सबकुछ ठीकठाक
निपट जाए। पर उनके चेहरे पर असंतोष का भाव कभी नहीं आया। रामचंद्र अकेले
ही ठेले पर बल्ला, पटरी, बालू लादकर पहुंचाते हैं। गोड़रिया टोला बशारतपुर
निवासी रामचंद्र का कहना है घर परिवार में बैठने से परेशानी बढे़गी इससे
अच्छा मेहनत किया जाए। उसका कहना है कि दुर्घटना के बाद से उसे किसी
प्रकार की सहायता नहीं मिली पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी तक
पेंशन नहीं लगी।