अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेड लेने की योजना

शिमला. लैटिन अमेरिकी देश कोस्टारिका की
यात्रा के बाद हिमाचल सरकार रेड (रिड्यूस ग्रीनहाउस गैस इमिशन फ्रॉम
डिफॉरेस्टेशन एंड फॉरेस्ट डिग्रेडेशन) स्कीम के तहत वर्ल्ड बैंक से आर्थिक
मदद का प्रस्ताव रखेगा। प्रदेश को रेड से सहायता मिलने का पक्ष इसलिए भी
मजबूत है क्योंकि वर्ल्ड बैंक ने प्रदेश की टीम को वहां आने का न्योता
दिया है। प्रदेश में कुल 3703297 हैक्टेयर वन क्षेत्र है और हर साल राज्य
में वनों का विस्तारीकरण हो रहा है।

वनों के संरक्षण और विस्तारीकरण की एवज में सरकार पेस (पेमेंट फॉर
इंवायर्नमेंट सर्विसेज) सीडीएम (क्लीन डवलपमेंट मैकेनिज्म)के तहत आर्थिक
मदद के लिए पक्ष रखेगी। एक ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वनों से सरकार को
आमदनी होने वाली है तो दूसरी ओर केंद्र ने सैद्धांतिक तौर पर प्रदेश सरकार
को ग्रीन बोनस मंजूर कर दिया है। मिड हिमालयन वाटरशेड डवलपमेंट प्रोजेक्ट
में राज्य सरकार के बेहतरीन कार्य को देखते हुए वर्ल्ड बैंक ने
मुख्यमंत्री सहित छह अधिकारियों की टीम को 9 फरवरी से 20 फरवरी तक
कोस्टारिका और वाशिंगटन का न्योता दिया है।

कोपेनहेगेन बैठक में रेड देने पर सहमति हुई है और हिमाचल देश का पहला
राज्य होगा जो इस दिशा में आगे बढ़ेगा। प्रदेश में वन क्षेत्र हर साल बढ़
रहा है मगर रेड के तहत मूल वन भूमि पर वर्ल्ड बैंक मदद देगा। प्रदेश सरकार
वन संपदा की एवज में राज्य सरकार को सालाना 1830 करोड़ रुपए का नुकसान
होने का मामला कई साल से रख रही है। सरकार का दावा है कि राज्य के पास 10
हजार करोड़ रुपए मूल्य के वन हैं और
180 करोड़ रुपए से अधिक इनके रखरखाव पर खर्च आता है। इसके अलावा नए वनीकरण और अन्य पर 150 करोड़ खर्च आता है।

यदि सरकार वैज्ञानिक तकनीक से वनों का दोहन करती है तो 1000 करोड़ रुपए
की कमाई होगी। अतिरिक्त मुख्य सचिव अभय शुक्ला ने कहा कि रेड दुनिया के
लिए बिल्कुल नया कॉन्सेप्ट है और हिमाचल देश और एशिया में आगे बढ़ने वाला
पहला राज्य होगा। उनका कहना है कि वन प्रदेश के लिए प्रमुख संसाधन है और
अब इस बात को केंद्र ने भी समझा है।

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