करीब दो सदी पहले 1788 में वारेन हेस्टिंग्स के महाभियोग कार्यवाही के समय एडमंड बर्क ने घोषणा की थी कि ‘घूसखोरी, गंदे हाथ से सने महान
साम्राज्य के प्रमुख गवर्नर का गरीब, दीन व पस्तहाल घूस लेना दरअसल किसी
सरकार को मानवता की निगाह में गिरा, घृणित व तिरस्कृत बनाता है.’ 1977 में
कंट्रोलिंग द ग्लोबल करप्शन ऐपडेमिक एक आलेख में रॉबर्ट एस लेइकन ने बर्क
के अभियोग पर कड़ी टिप्पणी की कि ‘आजादी हासिल करने के बाद देशी कुलीन तबके
हेस्टिंग्स के तरीकों पर चलते हुए अपनी ही बदहाल प्रजा को स्थानीय
रस्मो-रिवाज के नाम पर ठग रहे थे. भ्रष्टाचार की महामारी किसी वैधानिक
व्यवहार का पुनर्मूल्याकंन भर नहीं है, बल्कि यह अवैधता तथा घृणित तरीके
का आधुनिकीकरण भी है.’ हाल में ब्रिटेन में
सांसदों की शाहखर्ची के खुलासे ने उस बात की तस्दीक की है कि विकसित देशों
में भी भ्रष्टाचार फ़लता-फूलता है. अमेरिका का रिकार्ड और भी खराब है.
लेकिन यह विकासशील मुल्कों के लिए कोई सांत्वना की बात नहीं है.
भ्रष्टाचार दुर्लभ स्र्ोतों को सोख लेता है. विदेशी कॉरपोरेशन के मार्फ़त
नेताओं और अधिकारियों को जो ढेरों लाभ मिलते हैं, वह दरअसल कानूनी व नैतिक
रूप से लोगों का हक होता है. लेकिन ये विकासशील देश हैं, जो अपने घरेलू
कानूनों को मजबूती देने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रोत्साहन के
प्रयासों को रोकते हैं. भारत इन मुल्कों में अग्रगामी है. इसने 9 अगस्त
2005 को यूनाइटेड कंवेंशन अगेंस्ट करप्शन पर हस्ताक्षर भी किया है, लेकिन
अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है. ठीक ऐसा ही उसने यूनाइटेड नेशन कंवेंशन
अगेंस्ट टॉर्चर पर एक दशक पहले साइन किया, लेकिन अब तक पुष्टि नहीं की.
यातनाएं अब भी बदस्तूर जारी हैं. यही हाल भ्रष्टाचार का है. अपने
संस्मरण पुस्तक माइ प्रेसिडेंसियल इयर्स में पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन
ने पद पर आसीन होने के कुछ समय बाद 1987 की एक घटना का जिक्र किया है कि
‘जेआरडी टाटा शिष्टाचारवश उनसे मिलने आये. उन्होंने महसूस किया कि 1980 से
राजनीतिक चंदे के लिए उद्योगपतियों की ओर रुख नहीं किया गया और अब उन
लोगों के बीच सामान्य सोच यह है कि पार्टी सौदे में कमीशन के जरिये यह कमी
पूरा कर रही है.’ स्वीडिश पार्लियामेंट के संवैधानिक समिति के उपसभापति
एंडर्स ब्जोर्क ने 15 मार्च 1990 में खुलासा किया था कि ‘समिति के पास
लिखित साक्ष्य हैं कि भारत में बिजनेस सुरक्षित ढंग से करने के लिए 1980
के दशक से यही कहा जाता रहा है कि रिश्वत देनी होगी.’ रूस का सोच भी कुछ
ऐसा ही रहा है. दिल्ली स्थित कई वरीय राजनयिकों से लिये गये साक्षात्कार
के बाद एक लेख लिखा गया, जिसमें माकसिम यूसिन ने अपना गुस्सा व कुंठा
निकाला था (इजवेस्तिया, 16 दिसंबर 1995). इसमें
कहा गया था कि इस मामले में जापानी और अन्य मामलों में अमेरिकी व पूर्वी
यूरोपीय लोगों ने अपने हितों को पूरी दक्षता से प्रोत्साहित किया और इसे
सरल शब्दों में कहें तो उन्हें पता था कि किसे रिश्वत देनी और कितनी देनी
है.’ एक राजनयिक ने उन्हें बताया कि यह दलीलभारत के साथ कामकाज में बराबर
महत्वपूर्ण रही है. यहां आपको क्रोधित होने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि
आपको विद्यमान परिस्थितियों और यहां के खेल के अनुरूप ढलना होगा.’ यह
जानना रुचिकर होगा कि पाकिस्तान ने भी 9 दिसंबर 2003 को भ्रष्टाचार पर
संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर पर साइन किया, लेकिन 31 अगस्त 2007 को इसकी
पुष्टि कर दी. लेकिन द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने लिखा कि इसने अल्जीरिया,
अंगोला, चीन, मिस्र्, रूस, वेनेजुएला और जिंबाब्वे के साथ मिल कर यह मुहिम
चलायी कि यह कंवेंशन दंतहीन और अप्रभावी है. संयुक्त
राष्ट्र महासभा द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार सौदे में घूस व भ्रष्टाचार
के खिलाफ़ घोषणा पत्र और इसी अनुरूप 16 दिसंबर, 1966 को बिना किसी वोट एक
संकल्प पारित किया गया. पर यह केवल नैतिक बंधन रहा, कोई काूननी प्रावधान
नहीं. 2003 में ही भ्रष्टाचार पर चार्टर अंगीकार किया गया और पर्याप्त
सदस्यों के जरिये 2005 में इसकी पुष्टि हुई. संयुक्त
राष्ट्रसंघ के चार्टर में 71 अनुच्छेद हैं. कोई शंकालू इसे घोड़ा नहीं, पर
जीन है बात कह सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं. आगे जो लड़ाई लड़ी जानी है, उसकी
शुरुआत को लेकर कोई नाक-भौंह नहीं सिकोड़नी चाहिए. नागरिकों को दबाव बनाना
चाहिए कि सरकार इसकी पुष्टि करे, अगर उसने ऐसा नहीं किया है. यदि ऐसा है
तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सकारात्मक
रवैया रखना चाहिए. कंवेंशन का चौथा अनुच्छेद देशों
की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता को अक्षुण्ण रखता है. उनकी सहमति
अनिवार्य जांच, रक्षा और सजा प्रणाली है. दरअसल यह सभी पक्षकारों को ेइन
कानूनों को प्रभावी और सही दिशा में कार्यरूप देने तथा तटस्थ
स्वरूप देने का दायित्व है. दूसरा अध्याय निवारणकारी उपायों पर जोर देता
है, जिसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अभियोजन सेवाओं की ईमानदारी पर
जोर है. यहां एक प्रश्न खदबदाता है कि क्या पुलिस सतारूढ़ राजनीतिज्ञों के
नियंत्रण में है? विकासशील देशों में यह कटु सत्य है. निजी क्षेत्र भी
सार्वजनिक क्षेत्र की तरह दबा-ढंका है. अनुच्छेद 13 में एक स्पष्ट
प्रावधान है, जो सिविल सोसायटी की भागीदारी से जुड़ा है, खासकर उनकी
सूचनाओं तक पहुंच तक की गारंटी के लिए. तीसरा
अध्याय चार्टर का प्राणतत्व है. यह अपराधीकरण और कानून प्रवर्तन से जुड़ा
है. लेकिन यहां फ़िर राज्य का कर्तव्य है कि ऐसे कानून व अन्य कदम स्वीकार
करे, जिससे भ्रष्टाचार के मामले स्थापित हों. यहां मुकम्मल ढंग से
भ्रष्टाचार की परिभाषा भी तय की गयी है. ऐसे मामलों की जांच और संलिप्त
रहे लोगों की सजा का प्रावधान है. राज्यों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना
चाहिए, वैधानिक सहायता से लेकर प्रत्यर्पण तक में. चौथे अध्याय में
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पांचवें अध्याय में अवैध संपत्ति जब्ती की वापसी
से संबंधित प्रावधान हैं. सातवां अध्याय क्रियान्वयन से संबंधित है. इस
कांफ्रेस का पहला सम्मलेन 2006 में ओमान में, दूसरा 2008 में नाउ दुआ,
इंडोनेशिया मे और तीसरा दोहा, कतर में 2009 में हुआ. पुष्टि नहीं करनेवाले देश बतौर पर्यवेक्षक जुड़ते रहे हैं. इनमें भारत, जर्मनी, ईरान ओद अनेक देश हैं. इसके
अलावा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसे अनेक नामी गैरसरकारी संगठन हैं. वहां
चीन, रूस और मिस्र् जैसे देशों की आलोचना हुईकिउन्होंने अंतरराष्ट्रीय
संधि को कम प्रभावी बताया. इन संगठनों ने साझा कदमों से भ्रष्ट तंत्र को
पराजित करने की बात पर हामी भरी. उधर मादक द्रव्य व अपराध से संबंधित
संयुक्त राष्ट्र निकाय के मुखिया इससे सहमत नहीं हैं. वह पांच सालों पर
देशों के कार्यो की समीक्षा पर जोर देते हैं. इसी अनुरूप कमजोरियों व
रिक्तताओं पर बात होगी.