आबादी शून्य फिर भी अधिसूचित क्षेत्र

रांची। पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल्ड एरिया) के तहत कैसे हो पंचायत
चुनाव, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। झारखंड में वर्ष 2001 के जनसंख्या
आंकड़ों के आधार पर ग्राम पंचायत क्षेत्र का जो पुनर्गठन हुआ, उसके अनुसार
जिन पंचायतों को अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है उसमें कई पंचायतें
ऐसी हैं जहां जनजातियों की आबादी शून्य हैं। जबकि अधिसूचित क्षेत्र के लिए
जनजातियों की आबादी कुल आबादी की पचास फीसदी होनी चाहिए। खास यह कि सूबे
के 112 अधिसूचित प्रखंडों में से 43 प्रखंड ऐसे हैं, जहां जनजातियों की
आबादी पचास फीसदी से भी कम है। इनमें से नौ प्रखंड ऐसे हैं जहां जनजातियों
की आबादी 25 फीसदी से भी कम है, इनमें कांके, सोनाहातू, आदित्यपुर,
गोलमुरी-जुगसलाई, सरैयाहाट, साहिबगंज, राजमहल, बरहरवा, पाकुड़ शामिल हैं।
इसमें सबसे कम जनजातियों की आबादी 5.8 प्रतिशत बरहरवा व राजमहल में है
जबकि दर्जनों पंचायतें ऐसी हैं जहां की आबादी दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर
सकी है। यूं तो सूबे में अधिसूचित व सामान्य मिलाकर 74 से अधिक पंचायतें
ऐसी हैं जहां जनजातियों की आबादी शून्य है। उदाहरण के तौर पर अधिसूचित
क्षेत्र साहिबगंज प्रखंड में हर प्रसाद पंचायत, मखमलपुर दक्षिण पंचायत,
राजमहल प्रखंड में मोकिमपुर, प्राणपुर, पश्चिम जामनगर, पूर्वी जामनगर,
लखीपुर, पूर्वी नारायणपुर, मध्य नारायणपुर, पश्चिम नारायणपुर व दाहूटोला
आदि। यहां पेसा के तहत पंचायत चुनाव होना है, जिससे असमंजस की स्थिति बन
गई है।

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