आशुतोष झा, नई दिल्ली
सरकारी गिनती के अनुसार दिल्ली में डेढ़ लाख ऐसे लोग हैं, जिनके पास
सिर छिपाने के लिए कोई छत नहीं है। पर सरकारी तंत्र की ओर से इस कड़ाके की
ठंड में सिर्फ चार हजार आठ सौ लोगों के लिए रैन बसेरों में इंतजाम है। अब
सुप्रीम कोर्ट ने सभी बेघरों को तत्काल बसेरा देने का आदेश दिया है। पर जो
सरकार सालों में बेघरों के लिए छत न जुटा सकी वह रातों-रात डेढ़ लाख लोगों
के लिए कैसे और कब तक इंतजाम कर पाएगी। लाख टके के इस सवाल का जवाब आने
वाले दिनों में मिल जाएगा।। पर ये काम कितना मुश्किल है, इसकी पूरी तस्वीर
हम आपको दिखाते हैं।
दरअसल, हाल के सालों में पहली बार दिल्ली में पड़ रही इतनी तेज ठंड से
लाखों बेघर जिंदगी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। दिन तो जैसे-तैसे ये लोग
गुजार लेते हैं। मगर सर्द रातें कहर बनकर टूट रही हैं। आलम यह है कि
ठिठुरती सर्दी में भी लाखों लोग खुले आसमान के नीचे रात बिताने पर मजबूर
हैं। हालांकि सरकार की तरफ से अभी तक रैन बसेरों के रूप में जो थोड़ी बहुत
कोशिश की गई है, वह बेघरों की तादाद के सामने ऊंट के मुंह में जीरे जैसी
ही है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की एक प्रतिशत आबादी बेघर हैं। इनमें
वो लोग शामिल नहीं है, जो रिक्शा या फुटपाथ पर रात गुजारते हैं। दिल्ली
में कुल 40 रैन बसेरे हैं, जिनमें से 25 एमसीडी और 15 अस्थायी रैन बसेरा
दिल्ली सरकार चलाती है। एमसीडी के 25 रैन बसेरों में से सात एक गैर-सरकारी
संस्था चलाती है। बाकी की देखभाल नगर निगम के स्लम विभाग के जिम्मे है।
मुश्किल यह है कि इन रैन बसेरों में सिर्फ 4800 लोगों के रहने के इंतजाम
है। यानी जरूरतमंद आबादी के सिर्फ 3.2 फीसदी के लिए ठिकाना है।
सरकार ने 1988-89 में शहरी बेघर लोगों के लिए रैन बसेरा बनाने का
प्रावधान किया था। इस उम्मीद के साथ कि राज्य सरकार व अन्य निकाय भी इस
दिशा में कदम बढ़ाएगी। लेकिन आलम यह है कि राजधानी दिल्ली में एक भी रैन
बसेरा ऐसा नहीं है, जहां महिलाएं जाकर रात बिता सके। गत 22 दिसंबर को पूसा
रोड गोल चौराहे पर दिल्ली सरकार द्वारा लगाए गए अस्थायी रैन बसेरे को
एमसीडी ने हटा दिया था। जिसके बाद दो लोगों की मौत हो गई और इस मामले को
हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए एमसीडी को फटकार लगाई थी।
आदेश के बाद एमसीडी की पहल
दिल्ली नगर निगम की मानें तो हर साल की तरह इस बार भी सर्दियों में
स्थायी रैन बसेरों के अलावा करीब दो दर्जन जगहों पर टेंट लगाए गए हैं।
इसके लिए जगह काफी पहले चिह्नित कर ली गई थी। निगम के निदेशक (जनसंपर्क)
दीप माथुर का कहना है कि बेघरों के अस्थायी रूप से रहने की व्यवस्था निगम
हर साल 15 दिसंबर से शुरू कर देता है। उन्होंने बुधवार को कोर्ट के आदेश
तथा दिल्ली सरकार से मिले निर्देश का हवाला देकर कहा कि 25 रैन बसेरोंके
अलावा करीब दो दर्जन सामुदायिक केंद्र भी बेघर लोगों को रात गुजारने के
लिए दिया जाएगा। इनमें से पांच सामुदायिक केंद्र पुरानी दिल्ली इलाके में
हैं, बाकी दिल्ली के उन इलाकों में होंगे जहां ज्यादा बेघर लोगों की
संख्या है। एमसीडी द्वारा किए जाने वाले इस इंतजाम से कम से कम 10 हजार
बेघर लोगों को राहत मिलेगी। इसके अलावा अगले साल महिलाओं व बच्चों के लिए
अलग से रैन बसेरा बनाने तथा एमसीडी के प्रत्येक जोन में दो-दो नया रैन
बसेरा बनाने की बात कही।