गांव की मिट्टी ने किया परदेस से लौटने को मजबूर

बिक्रमगंज (रोहतास)। जज्बा हो तो पत्थर पर
भी दूब उगाई जा सकती है। यानी संकल्प के साथ शुरू किया गया कठिन से कठिन
काम आसान हो जाता है। इंद्राथ के किसानों को ही देखें। दशकों तक यहां परती
पड़ी ऊसर जमीन आज लहलहा रही है। किसान इसपर नगदी फसल के रूप में सब्जी
उगाकर खुशहाल हो रहे हैं। उनकी मेहनत ने गांव की सूरत ही बदल दी है। नतीजा
शहरों में रोजगार को गए गये युवक अपनी मिट्टी की सुगंध पाकर लौट रहे हैं।

गौर करें तो बिक्रमगंज प्रखंड में इंद्राथ गांव के उत्तर पूरब में सौ
एकड़ भूमि को ऊसर समझकर किसान झांकते ही नहीं थे। यहां कटीली झाड़ियां अलग
उगी थीं। बचन मिश्र बताते हैं कि वहां जाने से लोग भय खाते थे। विषैले
जीव-जंतुओं का बसेरा था। लेकिन पांच वर्ष पूर्व इसे खेतिहर बनाने का बीड़ा
उठाया गया तो झाड़ियों को साफ कर खेती शुरू हुई और सिंचाई की समस्या दूर
करने के लिए बोरिंग की गई। प्रारंभ में थोड़ी सी भूमि पर आलू की खेती की
गयी। अच्छी उपज देख किसानों ने अन्य फसलें बोनी शुरू कीं। अब तो प्याज,
हरी सब्जियों व मूंगफली की फसल से किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर रही है।
लगातार खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ी है। अब तो सौ टन से भी अधिक आलू
का उत्पादन हो रहा है। किसान अन्य सब्जियों की भी खेती कर रहे हैं।

बहरहाल बंजर भूमि अब सोना उगल रही है। किसान नागेंद्र मिश्र कहते हैं
कि इस भूखंड पर दखल कब्जा सिर्फ दर्जन भर किसानों का ही है। लेकिन पूरे
गांव के किसान लाभ उठा रहे हैं। कई किसान भूस्वामी से बटाईदारी या
बंदोबस्ती पर जमीन लेकर लेकर खेती करते हैं। पूछने पर वे बताते हैं कि हम
लोगों के मेहनत करने के संकल्प के बाद इस भूमि पर खेती करने की प्रेरणा को
बल तो स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र ने दिया है। कृषि विज्ञान केंद्र
प्रभारी जनार्दन प्रसाद कहते हैं कि अंदर से इलाके की मिट्टी बंजर नहीं
है। यदि मिट्टी की पहचान कर फसल लगायी जाए तो उत्पादन होना तय है।

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