कोलकाता, जागरण ब्यूरो। ‘दुख के साथ बताना
पड़ रहा है कि ज्योति बाबू अब हमारे बीच नहीं रहे’- रुंधे गले से वाम
मोर्चा के चेयरमैन विमान बोस के इस बयान के साथ ही वाम आंदोलन का एक
अध्याय समाप्त हो गया। छह दशक तक भारतीय राजनीति में अपनी मौजूदगी का
मजबूती से अहसास कराते रहे पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु
ने रविवार को पूर्वाह्न 11.47 बजे अंतिम सांस ली। वह 96 वर्ष के थे।
कद्दावर मार्क्सवादी नेता, भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के अगुवा में
शुमार और 23 वर्षो तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु को एक
जनवरी को निमोनिया के कारण कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में दाखिल कराया
गया था। धीरे-धीरे उनके सभी महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था।
रविवार को एएमआरआई अस्पताल में 12.10 बजे मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के
हवाले से विमान बोस ने ज्योति बसु के निधन की जानकारी दी। विमान बोस के
साथ मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और ज्योति बसु के इकलौते पुत्र चंदन
बसु भी मौजूद थे। केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम अस्पताल में ही उपस्थित
थे। लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, माकपा महासचिव प्रकाश करात,
माकपा नेता वृंदा करात, फारवर्ड ब्लाक के अशोक घोष और वाम दलों के कई अन्य
नेता अस्पताल पहुंचे। पूरा पश्चिम बंगाल, खासकर कोलकाता सकते में था।
बेहिसाब भीड़ एएमआरआई अस्पताल की ओर बढ़ने लगी। भीड़ को नियंत्रित करने के
लिए पुलिस को मजबूरन साल्ट लेक स्थित एएमआरआई अस्पताल की ओर जाने वाले सभी
रास्तों को बंद करना पड़ा। अपराह्न तीन बजे के बाद बसु का पार्थिव शरीर
पार्टी के लाल झंडे से सजे एक वाहन में रखकर ‘ज्योति बसु अमर रहे, ज्योति
बसु लाल सलाम’ के नारों के बीच इंदिरा भवन के लिए रवाना हुआ। इसके साथ ही
हजारों लोगों का काफिला जुड़ गया। काफिला आगे बढ़ने के साथ ही लोगों की
तादाद बढ़ती जा रही थी। सड़क के दोनों ओर लोग रोते हुए हाथ उठाकर कमरेड को
सलामी दे रहे थे तो कुछ लोग हाथ जोड़ कर प्रणाम कर रहे थे। जब पार्थिव शरीर
इंदिरा भवन पहुंचा तो अंतिम दर्शन करने वालों की तादाद लाखों में पहुंच
चुकी थी। इंदिरा भवन के कर्मचारियों के साथ सुरक्षा कर्मी भी रो रहे थे।
लोग उस बरामदे को बार-बार देख रहे थे जहां से ज्योति बसु लोगों को संबोधित
किया करते थे। अभी छह माह पहले आठ जुलाई को अपने जन्म दिन पर इंदिरा भवन
के उसी बरामदे में बैठ कर लोगों को अभिवादन स्वीकारा था। पार्थिव शरीर कुछ
वक्त के लिए इंदिरा भवन में रखा गया। इसके बाद जैसे ही काफिला पीस हेवेन
के लिए निकला तो लोग दर्शन को साल्टलेक से लेकर रफी अहमद किदवई रोड तक सड़क
को दोनों ओर खड़े हो गए। शव गृह ‘पीस हेवेन’ तक लोगों का तांता लगा रहा।
अंतिम संस्कार नहीं, देह दान
ज्योति बसु का अंतिम संस्कार नहीं होगा, बल्कि उनकी अंतिम यात्रा ही
निकाली जाएगी। उसके बाद पार्थिव शरीर एसएसकेएम अस्पताल को दान कर दिया
जाएगा। रविवार शाम को माकपा राज्य मुख्यालय में पार्टी महासचिवप्रकाश
करात के नेतृत्व में बैठक हुई। जिसमें सोमवार को दिवंगत नेता के पार्थिव
शरीर को आम जनता के अंतिम दर्शन के लिए रखने तथा अंतिम यात्रा की
कार्यसूची तय की गई। अंतिम यात्रा 19 जनवरी को होगी। इसके पहले विधान भवन,
राइटर्स बिल्डिंग और पार्टी मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट में पार्थिव शरीर
को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। अंतिम यात्रा एसएसकेएम अस्पताल जाकर
समाप्त होगी। यहां ज्योति बसु के पार्थिव शरीर को अस्पताल को सौंप दिया
जाएगा। बताते चलें कि ज्योति बसु ने वर्ष 2001 में ही अपने नेत्र व शरीर
को दान कर दिया था। निधन के कुछ घंटे बाद ही डाक्टरों ने उनके नेत्रों को
संरक्षित कर लिया।
सभी कायल थे बसु के
ज्योति बसु ने अपने राजनीतिक जीवन में जन नेता, सक्षम प्रशासक और विशिष्ट राजनेता के रूप में अपनी काबिलियत को साबित किया।
-राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल
ज्योति बसु का सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, विशेषतौर पर पश्चिम बंगाल के विकास में।
-उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी
ज्योति बाबू राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर एक सशक्त क्षेत्रीय आवाज थे। महत्वपूर्ण मुद्दों पर अक्सर उनकी सलाह लिया करता था।
-प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
बसु के निधन से राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया।
-पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
देश ने ऐसा कद्दावर नेता खो दिया जो जीवन भर सांप्रदायिकता, जातिवाद और कट्टरपंथ से लड़ता रहा।
-कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
हमारी विचारधाराएं अलग थीं। इसके बावजूद, उनकी महानता के चलते मैं उनका सम्मान करता हूं।
-वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी
बसु भारतीय राजनीति के परिदृश्य में कई दशकों तक एक महापुरुष की भांति
मौजूद रहे। वह महान देशभक्त, महान लोकतंत्रवादी और प्रेरणा स्रोत रहे।
-गृह मंत्री पी.चिदंबरम
वह एक कद्दावर हस्ती थे और संभवत: समकालीन राजनीति में उनके जैसा करिश्माई व्यक्तित्व और नहीं है।
-वित्ता मंत्री प्रणब मुखर्जी
पश्चिम बंगाल वाम मोर्चा सरकार और वाम आंदोलन का ज्योति बाबू पहला और आखिरी अध्याय थे।
-रेल मंत्री ममता बनर्जी
ज्योति बाबू के निधन से वाममोर्चा ने अपना अभिभावक खो दिया
-मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य