पटना कृषि मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा ने
जिला कृषि पदाधिकारियों को 18 जनवरी तक चयनित जैविक गांवों की सूची भेजने
का निर्देश दिया है। जैविक गांवों के चयन का आधार पशुओं की संख्या होगी।
इसका चयन जिला कृषि पदाधिकारी, आत्मा के परियोजना निदेशक व पशुपालन
पदाधिकारी संयुक्त रूप से करेंगे। जैविक गांवों के चयन सम्बन्धित संचिका
कृषि विभाग के मार्गदर्शन के लिए लम्बित थी। कृषि विभाग द्वारा जारी आदेश
के तहत ऐसे गांवों का ही चयन करना है ,जहां के किसान जैविक खेती के लिए
इच्छुक हैं। इसके साथ ही पशुओं की संख्या अधिक रहने पर ही सम्बन्धित गांव
का जैविक गांव के लिए चयन किया जा सकता है। प्रत्येक जिला में एक गांव का
चयन जैविक गांव के लिए करना है। जैविक गांव को आसपास के गांवों के लिए
प्रयोगशाला के रूप में भी परिणत किया जायेगा।
कृषि विभाग के अनुसार जैविक खेती से भूमि की उर्वरता को पोषक तत्वों से
भरपूर बनाया जाता है। इससे उत्पादित खाद्यान्न गुणवत्तायुक्त होता है।
सम्प्रति जैविक खेती का रकबा नगण्य है। गौरतलब है कि 1930-40 के दशक में
जैविक खेती को रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अधिक फायदेमंद घोषित किया
गया। राज्य में चार हजार वर्मी कम्पोस्ट की यूनिट स्थापित है। इसके अलावा
पांच हजार किसानों ने बिना किसी सहायता के यूनिट स्थापित की है। वर्मी
कम्पोस्ट का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से दिया जा रहा
है। इसके लिए बिहार कृषि प्रबंधन व प्रसार प्रशिक्षण संस्थान ने 300
मास्टर ट्रेनर तैयार किए हैं। उद्यान सलाहकारों को मास्टर ट्रेनर का
प्रशिक्षण मिला है,जो किसानों को वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की तकनीक दे
रहे हैं। कृषि विभाग के अनुसार जैव उर्वरक जिस फसल में प्रयोग किए जाते
हैं ,उससे बाद की फसल को भी शक्ति मिलती है। इससे मिट्टी में कार्बनिक
पदाथरें, आक्सिन, इंडोल एसिटिक एसिड आदि की मात्रा बढ़ जाती है।