नई
दिल्ली, राजकिशोर। नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की धीमी गति से केंद्र
असंतुष्ट है। केंद्र सरकार ने राज्यों से आपरेशन के साथ-साथ युद्धस्तर पर
ही बुनियादी ढांचे से लेकर लोगों को रोजगार से जोड़ने वाली योजनाएं पूरी
करने को कहा है। गृह मंत्रालय ने साफ कहा है कि हमेशा संगीनों के साये में
विकास कार्य नहीं हो सकते, लिहाजा इसमें तेजी लाकर सीधे लोगों से जुड़कर
उनके दिल में जगह बनाएं। राज्यों को चेतावनी दी गई है कि यदि विकास से
चूके तो नक्सलवाद ज्यादा खतरनाक रूप में सामने आएगा। कारण है कि सरकारी
विकास योजनाओं के दुश्मन नक्सली अब खुद विकास को हथियार बनाकर समर्थन
जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, गृह सचिव जीके पिल्लै की अध्यक्षता में दो दिन
पहले हुई नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्य सचिवों व पुलिस महानिदेशकों की
बैठक में विकास भी अहम मुद्दा था। अभी तक छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के
दंडकारण्य इलाकों में हुए आपरेशन की प्रक्रिया की समीक्षा हुई और तय हुआ
कि इसी तर्ज पर दूसरे राज्यों में भी नक्सल विरोधी अभियान में तेजी लाई
जाएगी। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के
दोनों शीर्ष अधिकारियों ने इस बात पर सहमति जताई कि फिलहाल तय रणनीति के
आधार पर ही आपरेशन चलेगा।
गौरतलब है कि नक्सल विरोधी अभियान के तहत पहले रणनीति बनी थी कि पुलिस
और सुरक्षा बल अभियान चलाएंगे। नक्सल प्रभावित इलाकों को पूरी तरह कब्जे
में लेकर वहां सख्त पहरे के बीच विकास योजनाएं चलेंगी। मगर कुछ जमीनी
दिक्कतों के बाद केंद्र ने अपनी यह रणनीति बदल दी। तय हुआ कि नक्सलियों के
खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान और विकास योजनाएं दोनों समांतर तरीके से
चलेंगी। वैसे भी सुरक्षा बलों की तैयारियों के चलते बड़े नक्सली नेता और
उनके लड़ाके दूसरी जगहों पर छिप गए हैं। इससे ‘सर्जिकल आपरेशन’ और विकास
कार्यक्रम साथ चलाने में बहुत ज्यादा समस्या नहीं है।
केंद्र व राज्य सरकारों ने जब नक्सलियों की विकास विरोधी छवि को जनता
के सामने लाना शुरू किया तो उन्होंने भी अपनी रणनीति बदल ली। गढ़चिरौली का
उदाहरण सबसे अहम है। सूखे से त्रस्त किसानों का समर्थन पाने के लिए
माओवादी संघर्ष समिति ने पूरे इलाके में परचे बंटवाकर किसानों से सरकार पर
विकास के लिए दबाव बनाने को कहा।
स्कूल, अस्पताल और सड़कों को उड़ाने वाले माओवादी किसानों से आह्वान कर
रहे हैं कि सरकार पर बांध बनाने, पानी का रिजर्वायर बनाने और बर्बाद फसल
का 10,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने का दबाव बनाएं। केंद्र का कहना है
कि नक्सली इन हथकंडों से लोगों के दिल में जगह न बना पाएं, इसलिए पूरी
तत्परता के साथ स्कूल, अस्पताल, सड़क के निर्माण व रोजगार से सीधे लोगों को
जोड़ा जाए।