वाशिंगटन।
संयुक्त राष्ट्र के एक जलवायु विशेषज्ञ ने अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों
में अंटाकर्टिका जैसी ठंड पड़ने पर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि यह एक
छोटे हिमयुग की शुरुआत हो सकती है। आने वाला समय में सर्दी और बेदर्द
होगी। साथ ही मैदानी इलाकों में भी हिमपात का अनुपात बढ़ेगा।
जर्मनी की केल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और संयुक्त राष्ट्र की
पर्यावरण परिवर्तन की रिपोर्ट के लेखक मोजिब लातिफ अगले 30 साल पारा और
ज्यादा गिरने वाला है। उनकी मिनी हिमयुग की यह थ्योरी दुनिया के सभी
महासागरों के जल के तापमान में स्वाभाविक परिवर्तन के चक्र पर आधारित है।
उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिग की साइकिल में कड़ाके की ठंड का तीस
साल लंबा अंतराल है। इससे साफ है कि साल दर साल सर्दी और भी जानलेवा होती
जाएगी। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिग के कारण तेजी से सर्दी बढ़ने की यह
रफ्तार 1980 से वर्ष 2000 के बीच भी देखी गई है।
20वीं सदी की इस रफ्तार को 50 फीसदी तक बढ़ते देखा गया था। तब्दीली की
रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तीन साल पहले रेगिस्तानी
दुबई में बर्फ गिरी थी।
समुद्री जल के बर्फीले पानी में बदलने में भले ही वक्त हो। लेकिन
ब्रिटेन के डेरवेंट द्वीप के कुंबरिया की सबसे बड़ी झील पिछले 10 साल में
पहली बार पूरी तरह से जम चुकी है। इससे पहले यह झील 1995-96 में जमी थी।
दिन में इस झील की सतह पर कुछ दरारें नजर आती हैं पर वह रात होती ही वापस
जमकर भर जाती हैं। कड़ाके की ठंड में भी यह स्थित ब्रिटेन में बिरला ही
देखने को मिलती है।
अंग्रेज छोड़ना चाहते हैं ब्रिटेन!
लंदन। क्या आपको पता है कि ब्रिटेन में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति
अपना देश छोड़कर जाना चाहता है। इसकी वजह है वहां का जानलेवा मौसम। एक
सर्वे के मुताबिक, ब्रिटेन के प्रत्येक तीन नागरिकों में से एक व्यक्ति
अगले दस सालों में बर्फ और शरीर जमा देने वाली ठंड से दूर जाना चाहता है।
‘डेली स्टार’ वेबसाइट इनटू द ब्लू डाट को डाट यूके ने करीब 1700 लोगों से पूछा कि अगले दशक को लेकर आपकी क्या योजना है?
इसके जवाब में करीब 34 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता
ब्रिटेन को छोड़ना है। जबकि उनमें से 86 प्रतिशत लोगों ने अपना देश छोड़कर
गरम जलवायु वाले देश में जाने की बात को अपना सपना बताया। इन लोगों में से
61 प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन के तौर तरीकों को गलत ठहराया। जबकि 18
प्रतिशत का मानना है कि यहां रहने-खाने का खर्च काफी ज्यादा है और 16
प्रतिशत ने आव्रजन के बढ़ते खर्चे को गलत ठहराया।
हालांकि इनमें से अधिकांश लोग लीसेसस्टर निवासी थे। लेकिन मैनचेस्टर,
बर्मिघम, ब्रेडफोर्ड और लंदन के लोग भी अपने देश से ऊब चुके हैं।