10 ग्राम पंचायतों के आबादी की कई सौ बीघे से ज्यादा जमीन जेडीए के खाते
में चढ़ गई। नतीजा, ग्राम पंचायतों ने इन जमीनों के पट्टे देने से हाथ
खींच लिया और वास्तविक मालिकाना हक न होने की वजह से जेडीए भी इन जमीनों
के पट्टे देने से बच रहा है। इसके चलते सैकड़ों ग्रामीण ग्राम पंचायतों और
जेडीए अधिकारियों के बीच फुटबॉल बने हुए हैं। तहसीलदार और जेडीए अधिकारी
मामले से अपना पल्ला झाड़ पंचायतों को कलेक्टर से अपील करने की हिदायत दे
रहे हैं तो सरपंच वकील का खर्चा नहीं होने का रोना रो रहे हैं। ऐसे में
ग्रामीणों के सामने अजब दुविधा खड़ी हो गई है कि वह करें तो क्या करें?
भास्कर को मिली जानकारी के अनुसार जेडीए गठन के बाद 1984 में जयपुर
रीजन ग्रामीण क्षेत्र की सारी सिवायचक और चरागाह भूमि जेडीए के नाम होनी
थी। इसके लिए जिला कलेक्टर बार-बार राजस्व अधिकारियों को निर्देश जारी
किए। जब लम्बे समय तक भी यह जमीन जेडीए के नाम नहीं हो सकी, तो 1993 में
तत्कालीन जिला कलेक्टर ने सभी तहसीलदारों को सिवायचक और चरागाह भूमि,
राजस्व रिकॉर्ड में जेडीए के नाम दर्ज करने के आदेश जारी किए। तत्कालीन
जमवारामगढ़ तहसीलदार ने सिवायचक और चरागाह भूमि के साथ गैर मुमकिन आबादी
भी जेडीए के नाम चढ़ा र्दी।
पता चला तो केवल एक गांव हटाया : जमवारामगढ़ तहसील की ग्राम
पंचायत भानपुर भी जेडीए रीजन में है। शेष गांवों की तरह भानपुर की आबादी
जमीन भी जेडीए के नाम चढ़ गई। दो साल बाद ही भानपुर के ग्रामीणों को मामला
पता चला। उन्होंने प्रशासन से अपील की जिस पर तहसील रिकॉर्ड में संशोधन कर
दिया गया। भानपुर की आबादी जमीन के अधिकार फिर से पंचायत को मिल गए, लेकिन
शेष किसी गांव के रिकार्ड में संशोधन नहीं हुआ।
भूल गए अपना ही निर्णय : जेडीए ने 1984 में जयपुर रीजन में भूमि
आवंटन और उपयोग को लेकर एक आदेश जारी किया। आदेश में स्पष्ट है कि जेडीए
ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी परियोजना के लिए भूमि का आरक्षण एवं उपयोग
कर सकेगा, लेकिन आबादी क्षेत्र पंचायतों या नगर पालिकाओं के अधिकार में ही
रहेंगे। जमवारामगढ़ क्षेत्र की पंचायतों की आबादी जमीन जेडीए के नाम
चढ़ाने की सूचना तहसीलदार ने जेडीए को भी भिजवाई, लेकिन प्राधिकरण इस पर
चुप्पी साधे रहा।
दस पंचायतों की आबादी जमीन : जमवारामगढ़ की तरह नौ और पंचायतों
की आबादी जमीन रिकॉर्ड में जेडीए के नाम दर्ज है। इनमें इंदरगढ़, बासना,
नायला, सायपुरा, लांगरियावास, रूपवास, पापड़, राहोरी पंचायत शामिल हैं।
विधायक गोपाल मीणा ने बताया कि इन पंचायतों की हजारों बीघा आबादी जमीन पर
जेडीए के नाम है। जानकारी के अभाव में पंचायतें पट्टा जारी करती रहीं।
हजारों पट्टे जारी होने के बाद जब यह तथ्य सामने आया तो प्रशासन ने
सरपंचों के खिलाफ कार्रवाई कर दी। डर से उन्होंने भी पट्टे जारी करना बंद
कर दिया।