मुजफ्फरपुर
[मो. शमशाद]। यह मुर्दो का घर है। दुनिया इसे कब्रिस्तान के नाम से जानती
है। हयात पूरी होने के बाद अपनों के कंधों पर लोग जनाजे की शक्ल में आकर
यहां दफन हो जाते हैं। मगर, कुछ बदनसीब ऐसे भी हैं, जो हैं तो जिंदा मगर
इनका आशियाना इन्हीं मुर्दो के बीच है।
जी हां, यह उनकी मजबूरी है। कहीं आसरा नहीं मिला तो कब्रिस्तान को ही
बना डाला घर। इस सच्चाई को आंखों से देखना है तो मेहंदी हसन चौक स्थित
ब्रह्मापुरा कब्रिस्तान चले जाइए।
यहां 50 से अधिक परिवार के दो सौ से ज्यादा लोगों का ठिकाना मिल
जाएगा। मुफलिसी में जैसे-तैसे परिवार को दो वक्त की रोटी मुहैया कराने
वाले इन गरीबों के सिर छिपाने का बस यहीं आसरा है। मौसम के हर मुकाम पर इन
बेबसों को कांपते देखा जा सकता है।
बरसात का मौसम इनके लिए खास तौर पर कहर लेकर आता है। झोपड़ी पानी में
डूब जाने के कारण तीन महीने इनकी जिंदगी खानाबदोश की तरह कटती है। जलजमाव
खत्म होने पर शुरू होती है फिर से आशियाना बनाने की जद्दोजहद। इनमें में
अधिकतर फकीर व कुरैशी जाति के लोग हैं।
इनमें से भी कई तो यहां कई पीढि़यों से बसे हैं। सरकारी सुविधाएं इन
लोगों के लिए सपना ही है। कई वर्षो से यहां रह रहे मो. नथुनी कुरैशी बताते
हैं कि यहां के लोग मजदूरी कर किसी तरह अपनी जिंदगी काट रहे हैं। कभी किसी
जनप्रतिनिधि ने या किसी सरकारी अधिकारी ने उनकी सुध नहीं ली।
हां, कब्रिस्तान कमेटी ने कभी उनसे जगह खाली करने पर जोर नहीं डाला।
कब्रिस्तान कमेटी के सचिव रजी अहमद बताते हैं कि यहां निवास करने वाले
खानाबदोश जीवन जी रहे हैं। अधिकतर लोगों का तो कोई आसरा भी नहीं दिखता है।
उन्होंने प्रशासन से इन गरीबों को पुनर्वासित करने की मांग की।
कमेटी के अध्यक्ष मो. समी कुरैशी व जिला जमीअतुल कुरैश के अध्यक्ष
मनौवर कुरैशी का कहना है कि इन लोगों की दयनीय हालत पर सरकार को रहम खाना
चाहिए। किसी तरह गुजर बसर कर रहे इन लोगों के पुनर्वास की तत्काल व्यवस्था
की जानी चाहिए।