रांची। मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने कहा है कि नक्सल समस्या के समाधान के
लिए सरकार चरमपंथियों से बातचीत करेगी। हिंसा समाधान नहीं है। सरकार चाहती
है कि नक्सली आएं और बातचीत करें। अगर वे सरकार में आना चाहते हैं तो बात
करें, अपना प्रस्ताव दें, सरकार विचार करेगी। शपथग्रहण के बाद शिबू ने
सूबे में स्थायी और स्थिर चलाने की बात कही और कहा कि सभी समस्याओं का
निराकरण किया जाएगा। खान-खनिजों के पट्टों के आवंटन में हुई गड़बड़ियों की
समीक्षा की जाएगी। सरकार चाहती है कि प्रचुर खनिज संपदा वाले इस प्रदेश से
खनिजों का निर्यात नहीं हो। सूबे में ही उद्योग लगें और खनिजों का उपयोग
यहीं हो। इससे लोगों को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा और राजस्व भी बढ़ेगा।
उद्योगों की स्थापना में भूमि अधिग्रहण एक बड़ी समस्या है। इसके लिए सरकार
नयी नीति तय करेगी। सूबे के लोगों के लिए जमीन जान से भी बढ़कर है। परंतु
अबतक के अनुभव यही बताते हैं कि जिसने भी उद्योग के लिए जमीन लिये
आदिवासियों को कुछ नहीं दिया। अधिकारी फर्जी ठप्पा लगाकर मुआवजे की रकम
हजम कर गये। जिन्हें नौकरी मिली उन्हें भी थोड़े दिनों बाद निकाल दिया गया।
एचइसी की स्थापना कई वर्ष पूर्व हुई, परंतु इसके विस्थापितों को अभी तक
कुछ नहीं मिल पाया है। इसलिए सरकार पुनर्वास नीति की समीक्षा कर ऐसी नीति
बनाना चाहती है जिससे आदिवासियों को उनकी भूमि के बदले अधिकतम लाभ मिल
सके। मुआवजा भी मिले और नौकरी तथा आवास भी।
लिए सरकार चरमपंथियों से बातचीत करेगी। हिंसा समाधान नहीं है। सरकार चाहती
है कि नक्सली आएं और बातचीत करें। अगर वे सरकार में आना चाहते हैं तो बात
करें, अपना प्रस्ताव दें, सरकार विचार करेगी। शपथग्रहण के बाद शिबू ने
सूबे में स्थायी और स्थिर चलाने की बात कही और कहा कि सभी समस्याओं का
निराकरण किया जाएगा। खान-खनिजों के पट्टों के आवंटन में हुई गड़बड़ियों की
समीक्षा की जाएगी। सरकार चाहती है कि प्रचुर खनिज संपदा वाले इस प्रदेश से
खनिजों का निर्यात नहीं हो। सूबे में ही उद्योग लगें और खनिजों का उपयोग
यहीं हो। इससे लोगों को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा और राजस्व भी बढ़ेगा।
उद्योगों की स्थापना में भूमि अधिग्रहण एक बड़ी समस्या है। इसके लिए सरकार
नयी नीति तय करेगी। सूबे के लोगों के लिए जमीन जान से भी बढ़कर है। परंतु
अबतक के अनुभव यही बताते हैं कि जिसने भी उद्योग के लिए जमीन लिये
आदिवासियों को कुछ नहीं दिया। अधिकारी फर्जी ठप्पा लगाकर मुआवजे की रकम
हजम कर गये। जिन्हें नौकरी मिली उन्हें भी थोड़े दिनों बाद निकाल दिया गया।
एचइसी की स्थापना कई वर्ष पूर्व हुई, परंतु इसके विस्थापितों को अभी तक
कुछ नहीं मिल पाया है। इसलिए सरकार पुनर्वास नीति की समीक्षा कर ऐसी नीति
बनाना चाहती है जिससे आदिवासियों को उनकी भूमि के बदले अधिकतम लाभ मिल
सके। मुआवजा भी मिले और नौकरी तथा आवास भी।