दाउदनगर (औरंगाबाद) झारखंड के मजदूरों को राजनीति से कोई मतलब नहीं रह गया
है। यहां जिनोरिया में कृषि कार्य करने पलामू और गढ़वा जिला से दर्जनों
मजदूर आए है। उन्हे इससे भी कोई मतलब नहीं है कि झारखंड की राजनीति क्या
हो रहा है। उन्हें बस अपने पेट की चिंता है। छतरपुर के रामपति भुईयां कहते
है कि घर दुआर हइए नहीं है, खपरैल है, जैसे तैसे रहते है। चुआड़ी बनाकर
बरसात का पानी पीते है। सरकार कोई सुविधा देती ही नहीं है। नदी से ही
सालों भर गुजारा होता है। जंगल की लकड़ियां काटकर बेचते है तो पेट भरता है।
ऐसे में चुनाव से क्या मतलब है। यहां राजेश्वर भुईयां, ललन भुईयां, कृत
भुईयां, सुखलाल भुईयां, मरछी देवी, सुमित्री देवी, अबासो अपना दिनचर्या
शुरू करने में व्यस्त मिले। मंगराडीह, तेनुडीह, सतबहिनी, हरैया, करकटा,
गम्हरियाडीह, हरके, बेलवा छौरी, नावाडीह, रघुनीडीह से मजदूर आते है। ये
मजदूर कृषि कार्य करने के बाद गुजरात, पंजाब, बाम्बे या दिल्ली कमाने चले
जाते है। मजदूर बताते है कि किसान मान सम्मान देते है। खाने पीने का
इंतजाम कर देते है। जिनोरिया के कृषक रामकेवल सिंह बताते है कि गांवों में
मजदूर नहीं हैं इसलिए यहां कमाने आना पड़ता है। करमा पंचायत के मुखिया एवं
किसान नेता सुदेश कुमार सिंह बताते है कि मजदूरों को आने जाने का किराया
किसान देते है। बारह बोझा में एक बोझा उसे मिलता है। ये कृषि मजदूर
संतुष्ट दिखे। किसानों को भी इन मजदूरों से दोहरा लाभ होता है। एक तो उनका
रबी फसल में फायदा होता है और दूसरे मजदूर पर्याप्त समय दे देते हैं।
है। यहां जिनोरिया में कृषि कार्य करने पलामू और गढ़वा जिला से दर्जनों
मजदूर आए है। उन्हे इससे भी कोई मतलब नहीं है कि झारखंड की राजनीति क्या
हो रहा है। उन्हें बस अपने पेट की चिंता है। छतरपुर के रामपति भुईयां कहते
है कि घर दुआर हइए नहीं है, खपरैल है, जैसे तैसे रहते है। चुआड़ी बनाकर
बरसात का पानी पीते है। सरकार कोई सुविधा देती ही नहीं है। नदी से ही
सालों भर गुजारा होता है। जंगल की लकड़ियां काटकर बेचते है तो पेट भरता है।
ऐसे में चुनाव से क्या मतलब है। यहां राजेश्वर भुईयां, ललन भुईयां, कृत
भुईयां, सुखलाल भुईयां, मरछी देवी, सुमित्री देवी, अबासो अपना दिनचर्या
शुरू करने में व्यस्त मिले। मंगराडीह, तेनुडीह, सतबहिनी, हरैया, करकटा,
गम्हरियाडीह, हरके, बेलवा छौरी, नावाडीह, रघुनीडीह से मजदूर आते है। ये
मजदूर कृषि कार्य करने के बाद गुजरात, पंजाब, बाम्बे या दिल्ली कमाने चले
जाते है। मजदूर बताते है कि किसान मान सम्मान देते है। खाने पीने का
इंतजाम कर देते है। जिनोरिया के कृषक रामकेवल सिंह बताते है कि गांवों में
मजदूर नहीं हैं इसलिए यहां कमाने आना पड़ता है। करमा पंचायत के मुखिया एवं
किसान नेता सुदेश कुमार सिंह बताते है कि मजदूरों को आने जाने का किराया
किसान देते है। बारह बोझा में एक बोझा उसे मिलता है। ये कृषि मजदूर
संतुष्ट दिखे। किसानों को भी इन मजदूरों से दोहरा लाभ होता है। एक तो उनका
रबी फसल में फायदा होता है और दूसरे मजदूर पर्याप्त समय दे देते हैं।