भारत भूषण, कपूरथला; ‘बाबू जी हमार बच्चों को खिलान-पिलान के लिए हमार पास
कुछ नाहीं है। पापी पेटवा के खातिर हमें मजूरी करनी ही पड़ेगी।’ यह दर्द
भरे शब्द थे, गुंडों के हाथों मार खाए बैठी झुग्गी बस्ती की सदस्य बसंतो
पासवान के। भूखे पेट और गरीबी ने बेइज्जत हुए इन लोगों को इस कदर मजबूर कर
दिया है कि उन्हें घायल अवस्था में भी काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं
है। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार की देर रात 30-35 अज्ञात गुंडा तत्वों ने
रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित झुग्गी बस्ती में तेजधार हथियारों से हमला कर
10-11 लोगों को घायल कर दिया था। शनिवार को जब दैनिक जागरण ने
मौका-ए-वारदात का दौरा किया तो काफी चौंकाने वाला मंजर देखने को मिला। इस
पूरे प्रकरण में सबसे दर्दनाक पहलू तो यह है कि बिना कसूर चोट खाए पीड़ित
लोग अपना उपचार करवाने के स्थान पर मेहनत मजदूरी के लिए सुबह होते ही कूच
कर गए। हमलावरों के खौफ से दुख उक्त झुग्गी बस्ती में मौजूद कुछ गिनी-चुनी
महिलाएं शुक्रवार की रात हुई गुंडागर्दी को लेकर कुछ ज्यादा बोलने को
तैयार होती नजर नहीं आई। पीड़ितों का तर्क था कि उन्हें अपने बच्चों के
पालन-पोषण के लिए एक दिन के लिए भी घर में बैठने से भूखे मरने की नौबत आ
जाती है। जो न्याय के रास्ते भूखे पेट की मजबूरी को साफ बयां करता है। गौर
हो कि यह कहानी सिर्फ बसंतो पासवान की ही नहीं है, बल्कि जिले में रहने
वाले ऐसे सैकड़ों गरीबों व बेसहारा लोगों की है, जो भयानक दरिद्रता के कारण
न्यायिक व्यवस्था की शरण में जाने से गुरेज करते हैं।
कुछ नाहीं है। पापी पेटवा के खातिर हमें मजूरी करनी ही पड़ेगी।’ यह दर्द
भरे शब्द थे, गुंडों के हाथों मार खाए बैठी झुग्गी बस्ती की सदस्य बसंतो
पासवान के। भूखे पेट और गरीबी ने बेइज्जत हुए इन लोगों को इस कदर मजबूर कर
दिया है कि उन्हें घायल अवस्था में भी काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं
है। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार की देर रात 30-35 अज्ञात गुंडा तत्वों ने
रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित झुग्गी बस्ती में तेजधार हथियारों से हमला कर
10-11 लोगों को घायल कर दिया था। शनिवार को जब दैनिक जागरण ने
मौका-ए-वारदात का दौरा किया तो काफी चौंकाने वाला मंजर देखने को मिला। इस
पूरे प्रकरण में सबसे दर्दनाक पहलू तो यह है कि बिना कसूर चोट खाए पीड़ित
लोग अपना उपचार करवाने के स्थान पर मेहनत मजदूरी के लिए सुबह होते ही कूच
कर गए। हमलावरों के खौफ से दुख उक्त झुग्गी बस्ती में मौजूद कुछ गिनी-चुनी
महिलाएं शुक्रवार की रात हुई गुंडागर्दी को लेकर कुछ ज्यादा बोलने को
तैयार होती नजर नहीं आई। पीड़ितों का तर्क था कि उन्हें अपने बच्चों के
पालन-पोषण के लिए एक दिन के लिए भी घर में बैठने से भूखे मरने की नौबत आ
जाती है। जो न्याय के रास्ते भूखे पेट की मजबूरी को साफ बयां करता है। गौर
हो कि यह कहानी सिर्फ बसंतो पासवान की ही नहीं है, बल्कि जिले में रहने
वाले ऐसे सैकड़ों गरीबों व बेसहारा लोगों की है, जो भयानक दरिद्रता के कारण
न्यायिक व्यवस्था की शरण में जाने से गुरेज करते हैं।