मुद्दे नहीं, स्थानीयता व व्यक्तित्व हावी

रांची। पिछले विधानसभा चुनाव के समय 2005 में जो भाजपा राज्य की सभी 81
सीटों में से 30 और जदयू के साथ कुल मिलाकर 36 सीटें पाकर सबसे बड़े दल और
गठबंधन के रूप में उभरी थी, वह इस दिसंबर के चुनाव में स्वयं 20 एवं
सहयोगी जदयू 2 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। झामुमो उस बार 17 सीटें लेकर
आया था, इस बार एक बढ़त पाते हुए 18 तक जा पहुंचा। कांग्रेस 2005 में नौ
सीटों पर सिकुड़ी हुई थी। वह इस बार छह विधायक बढ़ाते हुए 14 तक जा सकी।
इन्हीं पांच वर्षो में भाजपा से छिटक कर अलग हुए झाविमो 11 सीटें पा
अप्रत्याशित आगे बढ़ा। आजसू पिछली बार के दो के सापेक्ष इस बार पांच सीटें
हथिया ले गई। और तो और आय से अधिक संपति अर्जित करने तथा घपले-घोटालों के
फेर में फंसे बंधु तिर्की, एनोस एक्का, हरिनारायण राय भी जीत गए। इसी
प्रकार ऐसे ही आरोप झेल रहे 2006 में निर्दलीय होते हुए मुख्यमंत्री की
कुर्सी तक पहुंचने का रिकार्ड बनाने वाले मधु कोड़ा की पत्‍‌नी गीता कोड़ा
भी मैदान मार ले गई।

इस चुनाव में कांग्रेस, भाजपा और जदयू ने भ्रष्टाचार को नंबर एक का
मुद्दा बनाया। परिणाम सामने न आ सका। मतलब भ्रष्टाचार की हवा निकल गई।
महंगाई बेतहासा बढ़ी है। इसे भुनाने की कोशिश भाजपा ने अप्रैल-मई के
लोकसभा चुनावों में भी की थी लेकिन बेअसर रही। इस बार भी वह तीर नहीं चला।
इस वर्ष राज्य सुखाड़ से गुजर रहा है। पलामू में तो अकाल का ही माहौल है।
पिछले वर्ष भी वहां सुखाड़ था। उस समय केंद्र से पांच सौ का विशेष पैकेज
लाने और विशेष राहत चलाने की सियासी हवा गर्म होकर तुरंत ठंडी हो गई। इस
बार भी वहां विशेष राहत नहीं पहुंची। परिणाम सभी सीटों पर बदलाव सामने
आया। कांग्रेस के सेनापति प्रदीप कुमार बलमुचू हों कि जदयू के जलेश्वर
महतो या राजद के गौतम सागर राणा, स्पीकर आलमगीर आलम हों कि पूर्व डिप्टी
स्पीकर बागुन सुंब्रुई, डिप्टी सीएम स्टीफन मरांडी हों कि सुधीर महतो, ऐसी
तमाम शख्सियतें धराशायी हो गई। हालांकि भाजपा, कांग्रेस, झामुमो, आजसू,
झाविमो, जदयू, राजद, वाम दल आदि सभी ने चुनाव पूर्व बड़े आकर्षक घोषणा पत्र
तैयार किए थे लेकिन कुछ नहीं चला। चली तो केवल स्थानीयता। व्यक्तित्व भी
हावी रहा अन्यथा बंधु तिर्की, एनोस एक्का, हरिनारायण राय और गीता कोड़ा की
जीत संभव नहीं थी। जिसने अपने क्षेत्र में काम किया, वह जीत गया। उसके
आचरण से मतदाताओं ने वोट को अलग ही रखा। मतलब, मतदाता को अपने क्षेत्र से
मतलब है, झारखंड उसकी नजरों से ओझल है।

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