मुरैना का गुलाब इत्र बना रहा अपनी पहचान

मुरैना। चंबल के बीहड में बसे मुरैना में गुलाब से इत्र बनाने का
कारोबार पहली बार शुरु हुआ है। यहां से गुलाब के इत्र की देश के कई
हिस्सों में आपूर्ति की जा रही है।

सोलहवीं शताब्दी में नूरजहा (मेहरुन्निसां) ने गुलाब से इत्र बनाने की
विधि ईजाद की थी तब किसी ने भी नही सोचा होगा कि यह फन एक दिन चंबल की
शुष्क घाटियों में व्यावसायिक रूप धारण कर लेगा। यूं अभी तक चंबल की पहचान
बीहड, बागी और बंदूक से होती रही है, लेकिन अब गुलाब के इत्र की खुशबू ने
देश भर में मुरैना को एक नई सकारात्मक पहचान दी है।

मध्यप्रदेश में संभवत: मुरैना ऐसा पहला स्थान है जहां गुलाब से इत्र
बनाने का काम शुरू किया गया है। यहां निर्मित गुलाब का इत्र देश भर में
आपूर्ति किया जाता है। यह इत्र उद्योग के लिए एक नई कडी बनकर उभरा है।
मुरैना शहर में गुलाब से इत्र निकालने के लिए एक लघु उद्योग स्थापित किया
गया है। विकास एग्रो डेवलपमेंट एसोसिएशन नामक इस संस्था के पास स्वयं की
दस बीघा जमीन है जिस पर गुलाब की खेती की जाती है। उसके अलावा गुलाब की
मार्केटिंग की संभावनाओं को देखते हुए यहां कुछ और लोगों ने भी गुलाब की
खेती शुरू कर दी है। समिति के संचालक के मुताबिक उनके संयंत्र में एक साल
में एक से डेढ़ किलोग्राम गुलाब रुह तैयार किया जाता है। इसके अलावा इत्र
बनाने की विधि के दौरान करीब छह हजार लीटर गुलाब जल भी प्राप्त होता है।

गुलाब रुह बनाने के लिए रोजा दमास्क नामक गुलाब का उपयोग किया जाता
है। अमूमन यह किस्म यहां पैदा नही होती लेकिन अब लोगो ने इसे यहां उगाना
शुरू कर दिया है।

गुलाब के फूल से बने इत्र की कीमत लाखों रुपए होती है। एक किलोग्राम
गुलाब रुह तीन लाख रुपए में बिकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि इस वर्ष देश
के अन्य हिस्सों में गुलाब की खेती अच्छी नहीं हुई इस लिए गुलाब के रुह की
कीमत पांच लाख प्रति किलो तक रही। इसके अलावा गुलाब जल भी 100 रुपए प्रति
लीटर के भाव से बिक जाता है।

मुरैना के बने चंबल ब्रांड गुलाब जल की अपनी अलग पहचान है। चंबल घाटी
में गुलाब की खेती और इससे इत्र बनाने का काम इसलिए भी सराहनीय है,
क्योंकि इस कारोबार से कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

विकास एग्रो डवलपमेंट ऐसोसिएशन संस्था गुलाब से इत्र बनाने के बाद
बेहद उत्साहित है। अब वह खस व गेंदा से भी इत्र बनाने का काम शुरु कर रहा
है।

समिति के एक अन्य अधिकारी के अनुसार उन्होंने पिछले वर्ष गुलाब के साथ
खस की जड़ों से भी लगभग दस किलो ग्राम इत्र बनाया था। अगले साल गेंदा से भी
इत्र बनाने का प्रयास किया जाएगा।

ग्वालियर में उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक महावीर सिंह तोमर के
मुताबिक चंबल अंचलमें फूलों की खेती की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि यहां
की माटी रेतीली है जिससे फूलों में कभी सड़न पैदा नहीं होती न ही फफूंद
लगने की आशंका रहती।

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