भोपाल त्रासदी के ढाई दशक


हममें
से

ज्यादातर
लोगों के लिए
भोपाल गैस
त्रासदी एक
औद्योगिक
दुर्घटना है,
जिसने 25 साल
पहले से लेकर
आज तक हजारों
लोगों की
हत्या की है और
लाखों को तबाह
कर दिया है। इस
भयावह घटना
में भोपाल की
यूनियन
कार्बाइड
फैक्ट्री से
बड़ी मात्रा
में मिथाइल
आइसोसायनेट
रिस कर शहर में
चारों ओर फैल
गई थी।
हालांकि यह
केवल एक
शुरुआत थी।

बाद के साल
में इस
त्रासदी ने
सरकारी
व्यवस्था की
संवेदनहीनता,
राजनीतिक और
प्रशासनिक
अयोग्यता,
कानूनी
लेटलतीफी,
सामूहिक तौर
पर जहर के असर
से जुड़े
अध्ययन का
अराजक मेडिकल
तरीका, बड़े
पैमाने पर
अनिश्चित काल
तक के लिए टलती
लोगों की
तकलीफें और इस
दुर्घटना को
पीछे छोड़कर
जिंदगी को आगे
बढ़ाने में
कुल मिलाकर
सरकार और समाज
की असफलता
जैसे कई विकृत
चेहरों को
उजागर किया।

केमिकल
पदार्थों के
अपने-आप हुए
विघटन से
फैक्ट्री की
जगह उतनी साफ
हो चुकी है,
जितनी हो सकती
थी। लेकिन
किसी एजेंसी
की ओर से इसके
लिए कोई
संगठित
प्रयास नहीं
किया गया।
अमेरिकी
केमिकल कंपनी
डाउ, जिसने
भोपाल
दुर्घटना के 16
साल बाद
यूनियन
कार्बाइड को
खरीद लिया, आज
भी लोगों के
गुस्से का
शिकार होती
है। यह गुस्सा
इस बात का है
कि अब तक इस
दुर्घटना से
जुड़े उन
मसलों का भी
समाधान नहीं
किया जा सका
है, जिनका हल
संभव था। जब
डाउ ने यूनियन
कार्बाइड को
खरीदा, तो उसने
इसकी नैतिक
कानूनी
देनदारियों
को भी खरीदा।
लेकिन इसके
बाद डाओ ने
इनको स्वीकार
करने की जगह
केवल कानूनी
खेल ही खेला
है।

जहां तक
पीड़ितों का
सवाल है, तो
उन्हें किसी
से न्याय नहीं
मिला। न ही उन
अदालतों से,
जिन्होंने
थोड़ी सी रकम
को मुआवजा
करार दिया, वो
भी उतने लोगों
के लिए जिनसे
कम से कम पांच
गुना ज्यादा
लोग इस
दुर्घटना से
पीड़ित हुए थे
और न ही सरकार
ने जिसने
त्रासदी के 20
साल बाद
मुआवजा बांटा
और बिना किसी
आधार के एक
न्यायिक जांच
को बीच में ही
खत्म कर दिया
है।

भारतीय
मेडिकल
अनुसंधान
परिषद ने
रहस्यमय
कारणों से
अपने अध्ययन
बीच में रोक
दिए और उद्योग
जगत ने
दुर्घटना से
मुंह फेर
लिया। डाउ के
लिए यह बहुत
आसान था कि वह
दुनिया के
सबसे भयंकर
औद्योगिक
दुर्घटना के
पीड़ितों के
लिए कुछ ठोस
मदद करे, लेकिन
उसने भी ऐसा
नहीं किया।
भले ही इसके
मारे लोगों की
जिंदगियों के
ढाई दशक नहीं
लौट सकते,
लेकिन सभी
पक्ष अब भी
अपनी गलतियों
को ईमानदारी
से सुधारें तो
पीड़ितों को
कुछ राहत तो
मिल ही
जाएगी।

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