नरेन्द्र शर्मा, जयपुर : गांवों की सरकार के नाम से पहचानी जाने वाली
पंचायतीराज संस्थाओं में विभिन्न प्रकार की अनियमितताओं में दागी के तौर
पर 1355 सरपंच और प्रधान के नाम सामने आए हैं। इनमें से 158 को राज्य
सरकार ने पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव से ठीक पहले क्लीनचिट दे दी है।
प्रदेश में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव की घोषणा सोमवार को होने की
उम्मीद है। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले इस तरह से दागियों को क्लीन चिट
दिए जाने को लेकर कई तरह के अर्थ निकले जा रहे हैं। राज्य सरकार ने 38
सरपंचों को विभिन्न मामलों में अयोग्य करार दिया। राज्य में 9184 सरपंच,
237 प्रधान और 32 जिला प्रमुख हैं।
इनमें से ज्यादातर के खिलाफ गलत पट्टे जारी करने, इंदिरा आवासों के
निर्माण में घपला, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र में गड़बडि़यां सामने आई
है। बड़ी संख्या में ऐसे प्रधान और सरपंच भी रहे हैं, जिनके दो से ज्यादा
संतानों के मामले रहे हैं। पंचायती राज से जुड़े इन प्रतिनिधियों के 1162
मामलों में तो अभी कोई कार्रवाई भी शुरू नहीं हो पाई है और सिर्फ जांच के
नाम पर ऐसे मामलों को अटका रखा है। डेढ़ सौ से अधिक जिन प्रकरणों में
क्लीनचिट दी है, इनमें सरपंच और प्रधान शामिल हैं। इन पंचायत प्रतिनिधियों
के खिलाफ चल रहे जांच प्रकरणों को समाप्त कर दिया गया है। बड़ी तादाद में
सरपंचों ने नरेगा के तहत रकम खुर्दबुर्द की है। राज्य में ऐसी शिकायतें
पांच हजार से ज्यादा सरपंचों के खिलाफ आई हैं, लेकिन उन्हें सोशल ऑडिट के
विवाद से जोड़कर लंबित कर दिया गया है। पंचायतीराज विभाग की जानकारियों के
अनुसार उपखंड अधिकारियों से लेकर पंचायतीराज मंत्रालय और मुख्यमंत्री
कार्यालय तक सरपंचों तक शिकायतों के ढेर लगे हैं, लेकिन राजनीतिक रुसूख के
ज्यादातर जिला प्रमुखों और प्रधानों को क्लीन चिट दे दी गई है। करीब 500
से ज्यादा मामलों में तो भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ही विभिन्न स्तरों पर
जांच कर रहा है।
पंचायती राज मंत्री भरत सिंह का कहना है कि सरपंचों से लेकर प्रधानों
तक काफी शिकायतें आई हैं, लेकिन विभाग ने इन पर गुणदोष के आधार पर ही
कार्रवाई की है। पिछली भाजपा सरकार में पंचायती राज मंत्री रहे कालूलाल
गुर्जर का कहना हैं कि उनकी जानकारी में लाया गया है कि उनके कार्यकाल में
दोषी पाए गए उन सभी सरपंचों को क्लीनचिट दे दी गई है, जिन्होंने कांग्रेस
को समर्थन दे दिया था। लेकिन मौजूदा पंचायती राज मंत्री इससे इनकार करते
हैं। हालांकि चुनाव से ठीक पहले कई जन प्रतिनिधियों को क्लीन चिट दिए जाने
को लेकर निचले स्तर तक की राजनीति गरमा गई है। विरोधी खेमे के नेताओं को
आरोप है कि विधायकों और सत्ता में बैठे नेताओं ने अपने लोगों को फिर से
चुनाव लड़ाने के लिहाज से बिना जांच पूरी कराए आनन-फानन में क्लिन चिट
दिलवा दी।