मुजफ्फरपुर रासायनिक खाद के उपयोग से पीछे हट
रहे किसानों को भले ही जैविक उर्वरक से की गयी खेती रास न आ रही हो,पर
मुजफ्फरपुर में निर्मित जैविक खाद से भारत के कई राज्यों के संतरे, चाय व
सेब के बागों में हरियाली बनी रहती है.दूसरे राज्यों में खाद की
आपूर्तिमिट्टी के लिए हानिरहित होने के कारण केवल चाय, सेब व संतरे की
फसलों में ही नहीं, बल्कि औषधीय फ़ार्मो में भी इसका व्यापक पैमाने पर
उपयोग किया जा रहा है.इसके साथ ही जैविक उर्वरक का उपयोग करने में झारखंड
का रामगढ़ व गुमला भी पीछे नहीं है.औषधीय कृषि फार्म में इसका प्रयोग किया
जा रहा रहा है.स्थानीय मार्केट में उचित मूल्य व खपत कम होने के कारण
हिमाचल प्रदेश के सेब के बागों के साथ ही असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम,
पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में भी इसकी आपूर्ति की जाती है. इसमें
माराकट चाय टी स्टेट, बांदलोनी टी स्टेट, मैनार टी स्टेट, गुमटी टी स्टेट
के साथ ही न्यू एंड बायोटेक, सिउली का नाम प्रमुख रूप से आता है.वहींउत्तर
प्रदेश के गोरखपुर के सब्जी फार्म भी उर्वरक मामले में मुजफ्फरपुर पर
निर्भर है.यह जिले के लिए गौरव की बात है.जिले के जैविक उर्वरक निर्माताओं
ने स्थानीय मार्केट के किसानों की रुझान इस खाद के प्रति न देख बाहर की ओर
रुख कर लिया है.कांटी के उत्पादक मुरलीधर शर्मा बताते है कि वैशाली,
मोतिहारी तथा बेतिया के औषधीय फार्मो में यहीं से निर्यात किया जाता
है.जिले के मड़वन, मीनापुर, साहेबगंज तथा कुढ़नी प्रखंडों में इसका निर्माण
होता है.मित्र कीटों की संख्या में कमीराजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के
मिट्टी व उर्वरक विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ राम रक्षा सिंह बताते हैं कि
रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से खेतों के मित्र कीट की संख्या में लगातार
कमी आ रही है.यह भविष्य के लिए घातक होगा,वहीं खर-पतवार नियंत्रण विभाग के
वरीय वैज्ञानिक डॉ डीके राय बताते हैं कि रासायनिक तत्व हानिकारक होने के
साथ-साथ लंबी अवधि तक अपना प्रभाव बनाये रखता
है.खेतों का पानी नदी में जाने से मछलियां व मेढ़क समेत अन्य मित्र कीटों
की संख्या घटती जा रही हैं.किसानों को इसके प्रयोग से बचना चाहिए. जिला
कृषि अधिकारी वैद्यनाथ रजक ने बताया कि जैविक उर्वरक मिट्टी में नमी बनाये
रखता है.
रहे किसानों को भले ही जैविक उर्वरक से की गयी खेती रास न आ रही हो,पर
मुजफ्फरपुर में निर्मित जैविक खाद से भारत के कई राज्यों के संतरे, चाय व
सेब के बागों में हरियाली बनी रहती है.दूसरे राज्यों में खाद की
आपूर्तिमिट्टी के लिए हानिरहित होने के कारण केवल चाय, सेब व संतरे की
फसलों में ही नहीं, बल्कि औषधीय फ़ार्मो में भी इसका व्यापक पैमाने पर
उपयोग किया जा रहा है.इसके साथ ही जैविक उर्वरक का उपयोग करने में झारखंड
का रामगढ़ व गुमला भी पीछे नहीं है.औषधीय कृषि फार्म में इसका प्रयोग किया
जा रहा रहा है.स्थानीय मार्केट में उचित मूल्य व खपत कम होने के कारण
हिमाचल प्रदेश के सेब के बागों के साथ ही असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम,
पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में भी इसकी आपूर्ति की जाती है. इसमें
माराकट चाय टी स्टेट, बांदलोनी टी स्टेट, मैनार टी स्टेट, गुमटी टी स्टेट
के साथ ही न्यू एंड बायोटेक, सिउली का नाम प्रमुख रूप से आता है.वहींउत्तर
प्रदेश के गोरखपुर के सब्जी फार्म भी उर्वरक मामले में मुजफ्फरपुर पर
निर्भर है.यह जिले के लिए गौरव की बात है.जिले के जैविक उर्वरक निर्माताओं
ने स्थानीय मार्केट के किसानों की रुझान इस खाद के प्रति न देख बाहर की ओर
रुख कर लिया है.कांटी के उत्पादक मुरलीधर शर्मा बताते है कि वैशाली,
मोतिहारी तथा बेतिया के औषधीय फार्मो में यहीं से निर्यात किया जाता
है.जिले के मड़वन, मीनापुर, साहेबगंज तथा कुढ़नी प्रखंडों में इसका निर्माण
होता है.मित्र कीटों की संख्या में कमीराजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के
मिट्टी व उर्वरक विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ राम रक्षा सिंह बताते हैं कि
रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से खेतों के मित्र कीट की संख्या में लगातार
कमी आ रही है.यह भविष्य के लिए घातक होगा,वहीं खर-पतवार नियंत्रण विभाग के
वरीय वैज्ञानिक डॉ डीके राय बताते हैं कि रासायनिक तत्व हानिकारक होने के
साथ-साथ लंबी अवधि तक अपना प्रभाव बनाये रखता
है.खेतों का पानी नदी में जाने से मछलियां व मेढ़क समेत अन्य मित्र कीटों
की संख्या घटती जा रही हैं.किसानों को इसके प्रयोग से बचना चाहिए. जिला
कृषि अधिकारी वैद्यनाथ रजक ने बताया कि जैविक उर्वरक मिट्टी में नमी बनाये
रखता है.