बीटी बैंगनः लड़ाई अब अंतिम दौर में

देश में बीटी बैंगन
उगाने की अनुमति को लेकर बहस अब तेज हो गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनी
मोनसांटो और उसकी भारतीय साझेदार मायको इसकी तरफदारी कर रही हैं। तो
स्वयंसेवी संस्थाएं व स्वतंत्र वैज्ञानिक इसका विरोध। दावों और विरोध का
आधार क्या है? वैज्ञानिक सबूत क्या हैं? ऐसे में बीटी कॉटन का पिछले आठ
साल का प्रदर्शन ही क्या बीटी बैंगन को उगाने की अनुमति का आधार हो सकता
है?

गुजरात: बीटी कॉटन से छाई खुशहाली

बीटी कॉटन की फसल में पानी ज्यादा लगता है। गुजरात में पिछले तीन-चार
साल अच्छी बारिश के कारण कपास किसानों को खासा फायदा हुआ। राज्य में प्रति
एकड़ किसानों को 1200-1800 किलोग्राम तक पैदावार मिली, जबकि परंपरागत कपास
में यह 400-800 किलोग्राम प्रति एकड़ ही मिलती है। बीटी की फसल जमीन से
ज्यादा पोषक तत्व खींचती है, इसलिए खाद की खपत 25 फीसदी बढ़ी। हां,
कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ा, लेकिन पहले से कम।

बीटी-बैंगन नहीं चाहिए, क्योंकि इसके जींस जहरीले होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

– कीर्तिभाई अमीन (पाटन के किसान)

विदर्भ : बीटी कॉटन ने मचाई तबाही

महाराष्ट्र में विदर्भ के कपास उत्पादक 14000 से ज्यादा गांव
सूखाग्रस्त हैं। यहां 2005 से बीटी कॉटन का सालाना उत्पादन 250 लाख
क्विंटल रहा है। पिछले वर्ष भी कॉटन का उत्पादन इतना ही रहा। इसका मुख्य
कारण इस इलाके में पानी की कमी होना है। नतीजा गरीब किसान महंगे बीटी बीज
खरीद कर नुकसान उठाने पर मजबूर हुआ।

बीटी कॉटन की तकनीक किसानों को महंगी पड़ी। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है।

– डॉ. शरद निंबालकर, कुलपति (पंजाबराव कृषि यूनिवर्सिटी)

राजस्थान : पहले आजमाएंगे, फिर अपनाएंगे

राजस्थान के हनुमानगढ़ और गंगानगर जिलों में 75 फीसदी किसान बीटी कपास
उगा रहे हैं। उन्हें फायदा हुआ, क्योंकि पैदावार 297 किलोग्राम से बढ़कर
प्रति हेक्टेयर 408 किलोग्राम हो गई है। कीटनाशकों की खपत भी 80 फीसदी तक
घटी है, साथ ही पानी की खपत पहले जैसी है। कपास के बीज तेल और पशु चारा
बनाने के काम आ रहे हैं।

बीटी बैंगन को किसान प्रायोगिक तौर पर आजमाना चाहते हैं। अगर पैदावार बढ़ी और रोग नहीं लगा तो सोच सकते हैं।

– एस.के.हुड्डा (उपनिदेशक कृषि बीज, जयपुर)

बीटी कॉटन चलेगा, पर बैंगन नहीं

बीटी समर्थक लॉबी

फसलों को कीड़े से बचाने का फिलहाल जीएम तकनीक से बेहतर कोई उपाय नहीं है।
इसीलिए मायको ने बीटी बैंगन का विकास किया है, ताकि किसानों का उत्पादन
बढ़ाया जा सके।

– एमके शर्मा, मायको के महाप्रबंधक

जीईएसी ने जब सभी सावधानियां बरतते हुए यह पाया है कि बीटी बैंगन
किसानों और आम लोगों के लिए उपयोगी है तो इसका विरोध करने का कोई औचित्य
नहीं है।

– शरद पवार, कृषि मंत्री

‘मायको द्वारा पेश बीटी बैंगन के फायदे इसके अनुमानित और प्रचारित
खतरों से कहीं ज्यादा हैं। ऐसे में भारतीय किसानोंको बायोटेक्नोलॉजी से
महरूम करने का कोई अर्थ नहीं है।’

– जीईएसी कमेटी के सदस्य अजरुला रेड्डी

रिव्यू कमेटी ऑन जेनेटिक मैन्यूपुलेशन (आरसीजीएम) और जीईएसी जैसी
समितियों में देश के शीर्ष वैज्ञानिक शामिल हैं। जब इन्होंने बीटी बैंगन
को मंजूरी दी है तो फैसला साइंटिफिक है।

– डॉ. एमके भान, सचिव, बायोटेक्नोलॉजी विभाग

इनका है विरोध

यह दावा पूरी तरह से गलत है कि बीटी बैंगन फसल को शूट बोरर कीड़े से
बचाता है। बैंगन की फसल को असली खतरा बैक्टीरिया से है। बीटी बैंगन में
इससे बचाव का कोई इंतजाम नहीं है।

-सुमन सहाय, संयोजक, जीन कैम्पेन

‘बीटी बैंगन खाने वाले पशुओं के खून में चिकित्सकीय पहचानों और
बायोकैमिस्ट्री मानकों में अंतर को मायको ने नहीं पहचाना। यह गलती तीन माह
के क्लीनिकल ट्रायल में बार-बार हुई।’

-जाइल्स एरिक सेरालिनि, स्वतंत्र शोधकर्ता

मायको के 90 दिन के परीक्षण और वैज्ञानिकों के पैनल के 10 चूहों पर
टेस्ट के नतीजों के आधार पर ही जीईएसी ने बीटी बैंगन को मंजूरी दे दी।
लेकिन इसके किडनी, लिवर और खून पर पड़ने वाले प्रभावों को पूरी तरह से
नजरअंदाज किया गया।

– देविंदर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ

देश में बैंगन की 250 से अधिक किस्में हैं। अगर बीटी बैंगन देश में
नाकाम रहा तो जैव विविधता ही खत्म हो जाएगी। क्या सरकार ने इसके लिए कदम
उठाए हैं?

– डॉ. एमएस स्वामीनाथन, हरित क्रांति के जनक

मोनसांटो का इतिहास

वियतनाम युद्ध (1962 से 1970) के दौरान अमेरिकी सेना ने जिस ऑरेंज गैस
का इस्तेमाल किया था, वह मोनसांटो ने बनाई थी। इससे 10 लाख से अधिक लोग
प्रभावित हुए थे।

मोनसांटो ने टर्मिनेटर बीजों का पेटेंट करवाया है। इसका मकसद दुनियाभर में बीज व्यापार पर कब्जा जमाना है।

अनुमति दी तो बवाल

11 राज्यों ने बीटी बैंगन का विरोध किया है। इसे अनुमति देने पर बवाल मचेगा।

पीएम भार्गव (जाने-माने मॉलीक्यूलर बायोलॉजिस्ट व जीईएसी के आमंत्रित सदस्य)

सरकारी विशेषज्ञ : है सुरक्षित

मायको की रिपोर्ट जिसे जीईएसी ने मंजूरी दी

* फसलों को कीड़ों से नुकसान गैर बीटी बैंगन की तुलना में 80 फीसदी तक कम।

* बीटी बैंगन के जहरीलेपन और एलर्जी पैदा करने वाले प्रोटीन की जांच में कोई हानिकारक बात नहीं पाई गई।

* एलिसा टेस्ट में खेत की मिट्टी पर कोई असर नहीं मिला।

* अन्य खरपतवारों में बीटी का संक्रमण फैलने की कोई संभावना नहीं मिली।

* बीटी बैंगन में मौजूद प्रोटीन सिर्फ कीड़ों को ही मारता है। इसमें
इंसानों में एलर्जी पैदा करने वाले या अन्य विषाक्त गुण नहीं हैं।

* बीटी का प्रोटीन पशुओं की आंतों में जाकर विघटित हो जाता है, इसलिए उन्हें इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

विदेशी विशेषज्ञ : है जहरीला

अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र विशेषज्ञों की राय

* बीटी कॉटन के पत्ते खाकर आंध्रप्रदेश के वारंगल में दर्जनों भेड़-बकरियों की मौतहुई।
* बकरियों की भूख कम हो गई, पर वजन बढ़ने लगा।
* खरगोशों के शरीर में खून की कमी पाई गई।
* चूहों में डायरिया और लिवर सिकुड़ने की शिकायत मिली।
* एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है।
* सात टेस्ट किए गए, जबकि 18 से 20 किए जाने थे।
* मायको ने टेस्ट के अहम आंकड़े पेश नहीं किए।

(यह निष्कर्ष सीन यूनिवर्सिटी, फ्रांस के जाइल्स एरिक सेरालिनी और
ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड एन्वायरनमेंट रिसर्च डॉ. जूडी
कारमैन ने निकाले)


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