भूमि अधिग्रहण (संशोधन) और पुनर्वास बिल को चालू संसदीय सत्र में पास पास करवाने की हड़बड़ी दिखाने के कारण यूपीए सरकार की भूरपूर आलोचना हो रही है।दोनों बिल को गरीबी-विरोधी माना जा रहा है क्योंकि इन बिलों के प्रावधानों से जाहिर होता है कि किसान अपनी जमीन से वंचित किए जायेंगे और इनका भारी संख्या में अपने वास स्थान से विस्थापन होगा।
उपर्युक्त दोनों बिलों को पास करवाने की हड़बड़ी का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि कैबिनेट ने इसे पास कर दिया जबकि खुद केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय की स्थायी समिति के तेवर इन दोनों बिलों को लेकर खासे कड़े थे।कई राजनीतिक दल जिसमें तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है,इन दोनों बिलों के खिलाफ हैं।
तकरीबन 150 जनसंगठनों,नागरिक संगठनों और तृणमूल स्तर के संगठनों के साझा मंच संघर्ष के झंड़े तले इन दोनों बिलों को पारित करवाने के प्रयासों का विरोध किया जा रहा है।जनसंगठनों के नेताओं का आरोप है कि बिलों के प्रावधान गरीबों के विरोध में हैं और ये बिल यूपीए सरकार के चुनावी वायदे के भी खिलाफ हैं।(विरोध में शामिल संगठनों की सूची के लिए देखें हमारे वेबसाइट का अंग्रेजी संस्करण)
भू-अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक, 2007 के तहत भू-अधिग्रहण अधिनियम,1984 का संशोधन किया जाना है। संशोधन विधेयक में सार्जनिक हित की पुनर्परिभाषा की गई है और सुरक्षा कारणों, आधारभूत ढांचे के निर्माण सहित ऐसी किसी भी परियोजना के तहत अधिग्रहीत 70 फीसदी जमीन की खरीद को मान्यता दी गई है जिससे आम जनता के हितों का संवर्धन होता हो।प्रस्तावित संशोधन विधेयक में कंपनियों को 70 फीसदी से ज्यादा जमीन की खरीद की मनाही है लेकिन यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो पायी है कि बिल में जिसे सार्जनिक हित कहा गया है उसे कोई व्यक्ति अदालत में चुनौती दे सके, इसका प्रावधान किया गया है या नहीं।हालांकि जमीन की खरीद-बिक्री के मामले में सरकार की भूमिका पिछले कई सालों से कम होती गई है लेकिन इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि डेवलपर्स या फिर बड़े कारपोरेटी घरानों के हितों के नुमाइन्दों ने आमदनी की किल्लत में पड़े किसानों की स्थिति का फायदा उठाते हुए उनसे हाथ के हाथ नगदी देने का लालच देकर बड़ी मात्रा में जमीन खरीद ली।
पुनर्वास और बंदोबस्ती विधेयक,2007 के तहत प्रावधान किया गया है कि अगर परियोजना के तहत ली जाने वाली से जमीन से मैदानी इलाकों में 400 या उससे ज्यादा परिवार विस्थापित होते हैं या फिर पहाड़ी और जनजातीय इलाकों में 200 या उससे ज्यादा परिवार विस्थापित होते हैं तो सभी संबद्ध घटकों को परियोजना के सामाजिक-प्रभाव के आकलन के लिए अध्ययन करवाना होगा और यह अध्ययन कई अनुशासनों के विशेषज्ञों की स्वतंत्र टोली द्वारा करवाया जाना चाहिए।
एऩएपीएम सहित कई संगठनों ने इन दोनों विधेयकों के विरोध में 18-24 नवंबर तक दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन किया।संगठन द्वारा जारी अपील की मूल प्रति हमारे अंगरेजी संस्करण में उपलब्ध है।