केंद्रीय कार्मिक मंत्री पृथ्वीराज चवाण का कहना है कि अवाम से सलाह मशविरे के बगैर सूचना का अधिकार अभियान में संशोधन करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। सूचना के अधिकार अभियान(नेशनल कंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फॉरमेशन) के एक प्रतिनिधिमंडल से अपने दफ्तर में बातचीत के दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रस्तावित संशोधनों की रुपरेखा क्या होगी, इस विषय पर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
श्री चवाण ने कहा कि नागरिक संगठन आरटीआई परामर्शी परिषद बनाने की सलाह दे रहे हैं ताकि सरकार और सूचना के अधिकार से जुड़े विभिन्न तबकों के बीच आसानी से संवाद सेतु कायम किया जा सके और हमने इस सलाह के लिए अपना दिमाग खुला रखा है।केंद्रीय मंत्री ने इस बात के भी संकेत दिए कि सरकार इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए एक पोजीशन पेपर लाने वाली है जिससे प्रस्तावित संशोधनों पर सलाह मशविरे की प्रक्रिया को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
श्री चवाण ने सूचना के अधिकार अधिनियम में संशोधन की संभावना से इनकार नहीं किया लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस संसोधन के पीछे मकसद कानून को मजबूत करना है।मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त अरुणा रॉय और सूचना के अधिकार अभियान के कार्यकर्ता शेखर सिंह की अगुवाई में गए प्रतिनिधिमंडल की इस बात ने केंद्रीय मंत्री को प्रभावित किया कि अगर सूचना के अधिकार कानून से फाईल नोटिंग वाला प्रावधान हटाया जाता है तो यह कानून को कमजोर करने वाला कदम होगा। प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय मंत्री को बताया कि अगर सूचना देने से बचने के लिए अर्जी को खारिज करने का आधार तुच्छ या सारहीन सूचना अथवा विद्वेष प्रेरित मंशा आदि को बनाया जाता है तो यह अपने आप में सूचना के अधिकार कानून का माखौल उड़ाने वाला कदम होगा। श्री चवाण ने प्रतिनिधिमंडल के साथ इस बात पर सहमति जतायी कि बगैर सलाह मशविरे का सूचना के अधिकार कानून में बदलाव करना नुकसानदेह साबित होगा।एनसीपीआरआई के सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने इससे पहले मंत्री महोदय से कहा था कि मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा गिनायी जा रही सारी समस्याओं का निदान कानून में संशोधन किए बगैर किया जा सकता है। प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री महोदय से यह भी कहा कि जनहित को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित संशोधनों पर बहस चलाना जरुरी है।
(एनसीपीआरआई द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के लिए देखें हमारा अंग्रेजी संस्करण)